विवाह पूर्व वर-वधू की करवा ले ये जाँच नहीं तो हो सकती है जीवन भर की परेशानी !

विवाह पूर्व वर-वधू की करवा ले ये जाँच नहीं तो हो सकती है जीवन भर की परेशानी

हर व्यक्ति चाहता है कि उसे ऐसा जीवन साथी मिले जो जिंदगी की हर तकलीफो को हँसते हुए सुलझा ले और अच्छे दाम्पत्य जीवन में ऐसा देखा भी जाता है। अगर जीवन साथी अच्छा हो तो यह जीवन ऐसे कटता है जैसे कल ही हम मिले थे और जिंदगी इतनी जल्दी ख़त्म हो गई ! आपने कई दम्पतियों को ये गाना गाते तो सुना ही होगा ! तेरा साथ है कितना प्यारा कम लगता है जीवन सारा …… हमें आना पड़ेगा दुनियां में दुबारा…… लेकिन ये उन्ही के लिए संभव होता है जो समय के साथ कदम से कदम मिलकर चलते है तथा एक स्वस्थ जीवन के लिए वे सरे कदम उठाते है जो जरूरी है। इसलिए एक अच्छे जीवन साथी के साथ अच्छे से जीवन यापन हो इसके लिए वह पहले से ही सतर्क हो। हमारा आज का लेख उन्ही दम्पतियों के जीवन में कोई दिक्कत न आये, इसलिए आपको और आपके जीवन साथी कि जीवन में मधुरता बना रहे इस हेतु आपको शादी से पूर्व अपने जीवन साथी को अपना बना बनाने से पूर्व हमारा लेख जरूर पढ़ें।

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आमतौर पर हमारे देश में लड़के और लड़कियों की शादी कराने से पहले कुंडलियां मिलाई जाती है, लेकिन सुखमय दांपत्य जीवन और स्वस्थ भावी पीढ़ी के लिए शादी से पहले रक्त समूह की जांच कराना जरूरी है। भारत के अलावा किसी दूसरे देश में कुंडली जैसी कोई चीज नहीं होती। पश्चिम के देशों में शादी लड़के-लड़की के रक्त समूह की जांच करके की जाती है। वहां जाति बंधन नहीं होता। इनसे जन्मे बच्चे स्वस्थ सुंदर और उच्च बौद्धिक स्तर के होते हैं। आज ऐसे विवाहों की आवश्यकता है, जिसमें रक्त स्वस्थ हो।
विवाह से पूर्व जो जाँच करवाने चाहिए उनकी सूचि के साथ उनके बारे में विस्तृत चर्चा करते है –


1. रक्त समूह की जांच (Rh factor test)
आपको अपना ब्लड ग्रुप तो पता ही होता है लेकिन शादी से पहले अपने पार्टनर का ब्लाड ग्रुप जानना भी उतना ही जरूरी है. पहले बात तो इससे ये भी पता चलता है कि जरूरत पड़ने पर आप और आपका साथी एकदूसरे को ब्लाड डोनेट कर सकते हैं कि नहीं. और दूसरी सबसे जरूरी बात ये है कि दोनों का ब्लाड ग्रुप आने वाले बच्चे के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. आरएच फैक्टर (RH Factor) के कारण ही गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कई तरह की समस्याएं आती हैं। हमारे खून में लाल कोशिकाएं कई श्रेणियों की होती हैं – जैसे A , B, O और AB, इसमें भी हम सबके खून में दो ग्रुप होते हैं – नेगेटिव और पॉजिटिव।

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1940 में लैंडस्टीनर और विनर नाम के दो वैज्ञानिकों ने मानव रक्त कोशिकाओं में एंटीजन की उपस्थिति का पता लगाया। इस एंटीजन का पता पहले से ही रिसस मंकी यानी लाल मुंह के बंदरों में मिल चुका था। इन्हीं बंदरों के नाम पर इस एंटीजन का नाम रीसस पड़ा। रीसस यानी आर एच फैक्टर. जिनके खून में यह होता है उनका ब्लड ग्रुप पॉजिटिव कहलाता है और जिनमें यह नहीं होता वह खून नेगेटिव कहलाता है। नेगेटिव ब्लड ग्रुप है तो
ज्यादातर लोगों के खून में रीसस यानी आरएच फैक्टर पाया जाता है। इसका मतलब अधिकांश लोग पॉजिटिव ब्लड ग्रुप वाले होते हैं। सिर्फ 5% लोगों के खून में एंटीजन यानी आरएच फैक्टर नहीं होता है। जिनके खून में यह फैक्टर नहीं होता उनका खून जाहिर है नेगेटिव ग्रुप का होता है।
गायनोकॉलोजिस्ट के अनुसार पति-पत्नी दोनों का ब्लड ग्रुप RH Negative हो या दोनों का RH Positive हो तो समस्या नहीं है। पति का RH Negative हो और पत्नी का पॉजिटिव हो तो भी समस्या नहीं है। समस्या तो तब होती है जब पति का RH Positive हो और पत्नी का RH Negative, RH Negative ब्लड ग्रुप वाली मां के बच्चे का ब्लड ग्रुप नेगेटिव या पाजिटिव कुछ भी हो सकता है। अगर गर्भस्थ शिशु का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव हो तो प्लेसेंटा यानी गर्भनाल के जरिए मासिक खून विनिमय के दौरान शिशु का RH Positive खून मां के RH Negative ग्रुप से मिलकर प्रतिक्रिया करता है। इस प्रतिक्रिया स्वरुप इम्यून एंटीबॉडी तैयार होती है।
ये हो सकता है खतरा
यह एंटीबॉडी अगर ज्यादा मात्रा में तैयार होती है तो गर्भस्थ शिशु के लिए यह खतरनाक भी हो सकता है। इससे खून में मौजूद हीमोग्लोबिन को नुकसान पहुंचता है और खून में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ती जाती है। इससे गर्भस्थ शिशु को पीलिया हो सकता है। हमारे देश में गर्भस्थ शिशु में पीलिया के मामले अकसर देखने में आते हैं। गर्भस्थ शिशु के पीलिया के शिकार होने से कई मामलों में पाया जाता है कि गर्भ में ही बच्चे की मौत हो जाती है। अगर नहीं भी हो तो गर्भस्थ शिशु के दिमाग पर इसका बहुत असर पड़ता है।


2. HIV और अन्य यौन संचारित रोग(STDs) की जांच

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एचआईवी एड्स, Syphilis, Gonorrhoea, Herpes, Chancroid, hepatitis C आदि STD रोग यानी यौन संचारित रोग कहे जाते हैं. और यौन संबंधों की वजह से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक आसानी से पहुंच सकते हैं. एड्स तो जानलेवा है. इसलिए यह जानना बहुत जरूरी है कि आपका होने वाला साथी पहले से ही इससे संक्रमित तो नहीं. ये वो जानकारी है जिसे छिपाया नहीं जाना चाहिए ताकि बाद में कोई समस्या न हो. ये भी हो सकता है कि एक व्यक्ति को इस तरह का रोग हो और उसका साथी उसके साथ रहना चाहता हो, तो ऐसे में वो पीड़ित की देखभाल कर सकता है बशर्ते कि उसे अंधेरे में न रखा गया हो.शेष देखभाल की जरूरत होती है. अगर ये बातें पहले से पता होती हैं तो इसका उपाय पहले से ही कर लिया जाता है.


3. फर्टिलिटी जांच

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पुरुषों के स्पर्म काउंट और महिलाओं की ओवरी हेल्थ के बारे में जानने के लिए इनफर्टिलिटी टेस्ट करवाना काफी जरूरी होता है क्योंकि शरीर में इनफर्टिलिटी से जुड़े कोई भी लक्षण पहले से नजर नहीं आते, इसके बारे में टेस्ट के जरिए ही जानकारी प्राप्त की जा सकती है.अगर आप भविष्य में बेबी प्लानिंग या फिर आपकी या फिर आपकी नॉर्मल सेक्सुअल लाइफ के लिए यह काफी जरूरी होता है. आम तौर पर शादी होती है उसके कुछ समय बाद बच्चा प्लान किया जाता है. सही समय पर शादी हो तो कोई समस्या नहीं आती लेकिन अगर शादी देर से की गई हो तो गर्भधारण करने में परेशानी आती है. इसलिए लड़का और लड़की दोनों का fertility test करवाना जरूरी है. कई मामलों में समय पर शादी होती है फिर भी लोग माता-पिता नहीं बन पाते और कारण दोनों में से किसी एक की यही समस्या हो सकती है. इसलिए पहले ये टेस्ट करवा लिया जाए, जिससे आगे चलकर किसी तरह की नाराजगी न रहे. हालांकि हमारे समाज में इस टेस्ट का होना कई लोगों के आत्मसम्मान का सवाल होता है. अच्छाई से ज्यादा बुराई दे जाता है. लेकिन बाद में मिलने वाले शॉक से बेहतर है कि पहले ही सब चीजें साफ हों. ये टेस्ट बहुत आसानी से हो जाता है. महिलाओं के लिए आम तौर पर एक ब्लड टेस्ट या बहुत हुआ तो अल्ट्रासाउंड होता है और पुरुषों को अपने सीमन की जांच करवानी होती है.


4. जेनेटिक टेस्ट

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अगर आप स्वास्थ के मामले में सतर्क रहते हैं तो आपको अपने होने वाले साथी की फैमिली मेडिकल हिस्ट्री भी पता होनी चाहिए. क्योंकि कई बीमारियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाती हैं. चाहे वो डायबिटीज़ हो, हाइपरटेंशन हो, दिल, किडनी या लिवर की बीमारी हो, ब्रेस्ट कैंसर, Cystic Fibrosis, किसी भी तरह का कैंसर हो यहां तक कि गंजापन भी. इसलिए शादी के कुछ सालों के बाद होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में शादी से पहले ही जान लेने में कोई बुराई नहीं है. क्योंकि इसके लिए पहले से ही बचाव किए जा सकते हैं. इसके लिए सामान्य ब्लड टेस्ट से काम नहीं चलेगा बल्कि पूरा चेकअप करवाना होगा.
जेनेटिक टेस्टिंग के माध्यम से शरीर में मौजूद आनुवांशिक विकारों की स्थिति का पता चलता है और इसके उपचार के लिए समय पर जरूरी कदम उठा सकते हैं। इसीलिए आजकल आने वाली पीढ़ी में आनुवांशिक बीमारियों का खतरा कम हो इसके लिए विवाह पूर्व आनुवांशिक स्थितियों का पता लगाने के लिए जेनेटिक टेस्टिंग का सहारा लिया जाता है।
5. थैलेसीमिया टेस्ट

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थैलेसीमिया बेहद गंभीर बीमारी है। इसमें शिशु जन्म के तीन से पांच माह की उम्र से ही बीमारी ग्रस्त हो जाता है। ऐसे मे उसे हर महीने रक्त ट्रासफ्यूजन की जरूरत पड़ती है। थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे एक निश्चित उम्र (करीब 15-20 वर्ष) तक ही जीवित रह पाते हैं। डॉक्टरों के अनुसार शादी के पहले यदि वर-वधु की रक्त जांच कर ली जाए तो बच्चे में इस बीमारी को जाने से रोका जा सकता है।
यदि माता-पिता के रक्त में माइनर थैलेसीमिया पाया गया तो बच्चे को मेजर थैलेसीमिया होने की पूरी संभावना हो जाती है। मा के 10 सप्ताह तक गर्भवती होने पर पल रहे शिशु की जाच से बच्चे में थैलेसीमिया की बीमारी का पता लगाया जा सकता है। दूसरा उपाय यह है कि यदि विवाह के बाद माता-पिता को पता चले कि शिशु थैलेसीमिया से पीड़ित है तो बोन मैरो ट्रासप्लाट पद्धति से शिशु के जीवन को सुरक्षित किया जा सकता है। भारत में करीब 10 हजार नये बच्चे प्रतिवर्ष थैलेसीमिया के शिकार हो रहे हैं। नोएडा के सेक्टर 30 स्थित चाइल्ड पीजीआइ में थैलेसीमिया के इलाज की सुविधा शुरू हो चुकी है।
रोग का कारण: महिलाओं एवं पुरुषों के शरीर में क्रोमोसोम की खराबी माइनर थैलेसीमिया होने का कारण बनती है। यदि दोनों ही मानइर थैलेसीमिया से पीड़ित होते हैं तो शिशु को मेजर थैलेसीमिया होने की संभावना बढ़ जाती है।
लक्षण: जन्म के तीन से पांच महीने के बाद शिशु के नाख़ून और जीभ पीले पड़ने लगते हैं।
बच्चे के जबड़े और गाल असामान्य हो जाते हैं।
– शिशु का विकास रुकने लगता है, -वह अपनी उम्र से काफी छोटा नजर आने लगता है।
-चेहरा सूखने के साथ वजन नहीं बढ़ने पाता।
-बच्चा हमेशा कमजोर और बीमार बना रहता है। सास लेने में तकलीफ व पीलिया की आशंका बढ़ती है।
यह बीमारी होने पर शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की उम्र कम हो जाती है। इस कारण बार-बार शिशु को बाहरी रक्त चढ़ाना पड़ता है। शादी से पहले यदि वर-वधू के रक्त की जांच हो जाए तो इसे बच्चे में जाने से रोका जा सकता है।

6. हीमोफीलिया की जांच

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हीमोफीलिया होने पर खून का बहना बंद नहीं होता, शरीर के किसी भाग में जख्म होने से रक्त बहने लगता है। मगर थोड़ी देर बाद रक्त जम जाता है। यही रक्त शरीर के अंदर नहीं जमता, क्यों? यह तीसरे प्रकार की कणिका रक्त प्लेटलेडस की उपस्थिति के कारण होता है। एक स्वस्थ मनुष्य में रक्त जमने में 2 से 5 मिनट लगता है। कभी चोट लगे भाग से लगाचार रक्त स्त्राव होते रहता है। यह एक बीमारी है और इसे हीमोफीलिया कहते हैं। जब शरीर में रक्त की कमी होती है तब रक्त देते समय रक्त समूह की जांच आवश्यक है। ए रक्त समूह के लोग ए और ओ रक्त समूह से रक्त ग्रहण कर सकते हैं। और ए तथा एबी समूह को रक्त दे सकते हैं। इसी प्रकार बी रक्त समूह ओ को ग्रहण कर सकता है। बी तथा एबी रक्त समूह को रक्त दे सकता है। मगर एबी रक्त समूह वाले लोग ए, बी, एबी और ओ रक्त समूह का रक्त ग्रहण कर सकता है। लेकिन केवल एबी रक्त समूह को ही रक्त दे सकता है। इसके इस प्रवृत्ति के कारण इसे यूकनवर्सल रिसेप्टर कहते हैं। इसी प्रकार ओ रक्त समूह सभी रक्त समूह वाले व्यक्ति को रक्त दे सकता है लेकिन केवल ओ समूह का ही रक्त को ग्रहण कर सकता है। इसके इस प्रवृत्ति के कारण इसे यूनिवर्सल डोनेटर कहा जाता है। रक्त देते अथवा लेते समय ऐसा नहीं करने से रक्त जम जाता है और व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
ये बीमारी माता-पिता से उनके बच्चों को मिलती है। दरअसल इसका मुख्य कारण ये माना जाता है कि माता-पिता का ब्लड ग्रुप एक ही हो तो इसमें हीमोफीलिया का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। खतरा इसलिए बढ़ जाता है, क्योंकि एक ही ब्लड ग्रुप के माता-पिता के क्रोमोजोम की कार्यप्रणाली बुरी तरह बिगड़ने लगती है, जिससे ये स्थिति पैदा होने लगती है। यही कारण है कि शादी से पहले भावी पति-पत्नी के स्वास्थ्य की जांच के साथ ही ब्लड ग्रुप की जांच भी जरूरी तौर पर करवा लेनी चाहिए।

7. मानसिक स्वास्थ्य की जांच

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भारत में तो व्यक्ति का Mental health status जानना बहुत जरूरी है. क्योंकि यज्यादातर अरेंज्ड मैरिज होती हैं जहां लड़का लड़की की तस्वीरें देखकर रिश्ता पसंद या नापसंद किया जाता है. लेकिन तस्वीर देखकर यहां तक कि दो बार मिल लेने पर भी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य का पता नहीं चल पाता. आप किसी को एक बार देखकर ये नहीं पता कर सकते कि उसे डिप्रेशन, schizophrenia या कोई personality disorder तो नहीं है. व्यक्ति का बहुत गुस्सैल होना भी उसके मानसिक स्वास्थ्य से ही जुड़ा है. आजकल मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरुकता बड़ी है इसलिए ये बहतर है कि रिश्ता जो़ड़ने से पहले ही एक बार मनोवैज्ञानिक टेस्ट भी करवा लिया जाए. इस टेस्ट को psychometric test कहा जाता है और एक या दो दिन का समय लगता है. मनोवैज्ञानिक आपसे कुछ सवाल पूछकर और तस्वीरें दिखकार ये टेस्ट कर लेते हैं.
तो जो बंधन प्यार का हो और उम्र भर का हो उसे जोड़ने से पहले क्या ये जरूरी नहीं कि इन बातों का भी ध्यान रखा जाए. हम ये नहीं कहते कि कुंडली दिखाना पुरानी बात हो गई. अपने संतोष के लिए कुंडली भी मिलाएं लेकिन कुंडली के साथ साथ लड़के और लड़की के ये मेडिकल टेस्ट भी करवाएं. क्योंकि दो लोगों का भविष्य सिर्फ गुण मिलने से ही नहीं उनके स्वस्थ होने पर भी निर्भर करता है.

अगर आप हमारे इस लेख को पदगकर अपने बारे में सोचते है तो वास्तव में हमें इस लेख को आपके साथ साझा करने में बहुत खुशी होगी। उम्मीद है आप शादी से पूर्व कराये जाने वाले जांचों को पढ़कर अपने ज्ञान को बढ़ायेंगें। आप अपने तथा अपने साथी के साथ विवाह बंधन में बांधने से पहले इन जांचो को करवाकर एक अच्छे जीवन की सुरुवात करेंगे तब ही आप गुनगुना सकेंगे- तेरा साथ है कितना प्यारा कम लगता है जीवन सारा …… हमें आना पड़ेगा दुनियां में दुबारा……

उम्मीद है आपको हमारा लेख पसंद आया होगा , अगर आया है तो अपना सुझाव admin@mdcharji पर हमें जरूर दे सकते है।
धन्यवाद
मदन सिंह

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