Complete information of Chhattisgarh – छत्तीसगढ़ राज्य की पूरी जानकारी

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Chhattisgarh in Hindi : प्राकृतिक विविधता, सांस्कृतिक और पारंपरिक इतिहास के लिए प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ मध्य भारत के क्षेत्र में स्थित एक प्रमुख राज्य है। यह भारत का 9 वां सबसे बड़ा राज्य है, जिसका क्षेत्रफल 135,192 km2 (52,198 वर्ग मील) है। 2020 तक, इसकी आबादी लगभग 29.4 मिलियन है, जिसके हिसाब से यह देश का 17 वां सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। यह राज्य भारत में सबसे तेजी से विकसित राज्यों में से एक है जिसने कम समय में काफी उन्नति की है। भारत की सबसे पुरानी जनजातियाँ भी यहाँ रहती हैं, उनमें से कुछ लगभग 10,000 साल से इस राज्य का हिस्सा बनी हुई हैं। स्थानीय और जनजातीय लोगों की संस्कृति, कला और धर्म का मिश्रण, छत्तीसगढ़ प्राचीन भारत के उदाहरण को प्रदर्शित करता है।

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Complete information of Chhattisgarh – छत्तीसगढ़ राज्य की पूरी जानकारी : प्राकृतिक विविधता, सांस्कृतिक और पारंपरिक इतिहास के लिए प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ मध्य भारत के क्षेत्र में स्थित एक प्रमुख राज्य है। यह भारत का 9 वां सबसे बड़ा राज्य है, जिसका क्षेत्रफल 135,192 km2 (52,198 वर्ग मील) है। 2020 तक, इसकी आबादी लगभग 29.4 मिलियन है, जिसके हिसाब से यह देश का 17 वां सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। यह राज्य भारत में सबसे तेजी से विकसित राज्यों में से एक है जिसने कम समय में काफी उन्नति की है। भारत की सबसे पुरानी जनजातियाँ भी यहाँ रहती हैं, उनमें से कुछ लगभग 10,000 साल से इस राज्य का हिस्सा बनी हुई हैं। स्थानीय और जनजातीय लोगों की संस्कृति, कला और धर्म का मिश्रण, छत्तीसगढ़ प्राचीन भारत के उदाहरण को प्रदर्शित करता है। यदि आप भारत के इस समृद्ध राज्य के बारे में विस्तार से जानने के लिए उत्सुक है तो आपको हमारे इस लेख को पूरा जरूर पढ़ना चाहिए जिसमें आप छत्तीसगढ़ का इतिहास, संस्कृति, परम्परायें, भाषा,जनजातियाँ समेत अन्य महत्वपूर्ण विषयों के बारे में जान सकेगें ।

छत्तीसगढ़कीराजधानी – Capital of Chhattisgarh in Hindi: रायपुर (Raipur)

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Some important and interesting facts of Chhattisgarh in Hindi –छत्तीसगढ़राज्यकेकुछमहत्वपूर्णऔररोचकतथ्य  : 

1.)  इस क्षेत्र का प्राचीन नाम दक्षिण-कौसल है। मध्यकाल में इस क्षेत्र के प्रमुख शासकों ने 980 से 1741 ईस्वी के लिए कालपुर की रचना की। चोल राजवंश ने 11 वीं शताब्दी में इस क्षेत्र के कुछ भाग पर आक्रमण किया और शासन किये।

         पूर्व आधुनिक काल के दौरान यह क्षेत्र मराठों (नागपुर) के नियंत्रण में था। इसके बाद इसका नियंत्रण 1845 से 1947 के बीच ब्रिटिश के पास था।

छत्तीसगढ़ भारत का 26 वां राज्य है और यह 1 नवंबर, 2000 को मध्य प्रदेश से अलग कर के  तैयार किया गया। छत्तीसगढ़ राज्य के ‘चन्द्रलाल चन्द्रकर’ ने एक अलग राज्य के निर्माण के लिए 90 के दशक के अंत में प्रमुख भूमिका निभाई।

2.) छत्तीशगढ़ राज्य 7 सीमाओ के घिरा हुआ है,उत्तर में उत्तर प्रदेश,पुरवोउत्तर में झारखंड,पूर्व में उड़ीशा, दक्षिण में आंध्रप्रदेश,दक्षिण पश्चिम में तेलंगाना, पश्चिम में महाराष्ट्र और मध्य में मध्यप्रदेश। छत्तीशगढ़ के सबसे ऊंची चोटी गौरलाटा ( जिला -बलरामपुर) – 1225 मी. ऊंची है।

3.) छत्तीसगढ़ राज्य उच्चतम अनुसूचित जनजाति (आदिवाशी) की आबादी वाला एक राज्य है।अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगो की जनसंख्या राज्य की  50% जनसंख्या का हिस्सा हैं।

4.) पांडवानी एक गीत-संगीत है और महाभारत की घटनाओं का एक मिश्रित वर्णन है।तेजन बाई एक लोकप्रिय पांडवानी लोक कलाकार है।यह गीत छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में प्रसिद्ध है।

5.) भारत में 10 वां सबसे बड़ा राज्य। छत्तीसगढ़ भारत  में फसल के उत्पादन में नंबर 1 की श्रेणी में है, इसे “धान का कटोरा” के नाम से भी जाना जाता है । छत्तीसगढ़ में ही  तेंदू के पत्तो का बड़ी मात्रा में उपयोग बीड़ी बनाने के लिए भी किया जाता है। 

6.) छत्तीसगढ़ को  राष्ट्र में लौह अयस्क उत्पादन में तीसरा स्थान प्राप्त है । बी.एस.पी (भिलाई स्टील प्लांट)  को देश का Best Steel Plant in Country के लिए प्रधान मंत्री के द्वारा 10 बार पुरस्कार प्राप्त है । देश में कुल इस्पात उत्पादन से 15% छत्तीसगढ़ में किया जाता है।  कालपुर की रचना की। चोल राजवंश ने 11 वीं शताब्दी में इस क्षेत्र के कुछ भाग पर आक्रमण किया और शासन किये। 

7.) भारत में सबसे बड़ी खुली खदान (Open Cast Mine) और साथ ही दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादन वाला राज्य छत्तीसगढ़ जो प्रति वर्ष 35 मिलियन टन की उत्पादन रत में सबसे पिछड़े क्षेत्र में से एक होने के बावजूद यह खनिजों और खनन गतिविधियों में समृद्ध है और राज्य में आर्थिक सुधार खनिज संसाधनों की उपलब्धता के द्वारा लाया गया हैं।

8.) छत्तीसगढ़ में 3 राष्ट्रीय उद्यान और 11 वन्य जीवन शताब्दियां हैं। छत्तीशगढ़ में पुराने मंदिरो और एतिहाशिक स्थानो में से अधिकांश महिला शक्ति  से सम्बंधित है ।

  • बम्लेश्वरी मंदिर (Bamleshawari Mata)
  • दंतेश्वरी माता (Danteshwari Mata)
  • महामाया मंदिर (Mahamaya Temple)
  • चंदरपुर मंदिर (Chandarpur Mandir)
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9.) छत्तीसगढ़ के बारे में एक सुंदर तथ्य यह भी है की  भारतीय नियाग्रा के नाम से “प्रशिद्ध चित्रकूट जल प्रपात” छत्तीसगढ़ का झरना जो जगदलपुर जिले में स्थित है और इंद्रावती नदी पर है। मानसून के मौसम में इसकी काफी लंबी आकर के कारण इसे भारत की नियाग्रा नाम से भी जाना जाता है। इसकी आकर घोड़े की नाल जैसा प्रत्तित होता दिखाई पड़ता है।

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10.) छत्तीसगढ़ के बारे में एक मनोरंजक या रोचक तथ्य यह भी है कि इसके मंदिरों में चित्रकला और मूर्तिकला के लिए विशिष्ट हैं। मान्यता है कि कबीरधाम जिले के भोरमदेव मंदिर 11 वीं शताब्दी में नागवंशी राजाओं के द्वारा निर्मित कराया गया था। अपनी श्रृंगारिक और कामुक मूर्तियों के कारण इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है। पंथी, राऊत नाचा,  कर्मा नाचा,सुआ नाचा राज्य की प्रमुख लोक नृत्य हैं।

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  छत्तीसगढ़राज्यकाइतिहास – History of chhattisgarh in Hindi : छत्तीसगढ़ क्षेत्र का प्रारंभिक इतिहास केवल गुफा चित्रों और स्थापत्य अवशेषों के माध्यम से जाना जाता है, लेकिन कुछ लिखित दस्तावेजों में कहा गया है कि 14 वीं शताब्दी से यह क्षेत्र मुगलों के नियंत्रण में था। इसे बाद में 18 वीं शताब्दी में मराठों ने अपने अधिकार में ले लिया था और आज के दौर में सबसे अधिक किले इसी स्थान पर हैं। मराठा शासन के दौरान है इसका नाम छत्तीसगढ़ रखा गया था, जिसका अर्थ है छत्तीस किलों की भूमि। 19 वीं शताब्दी में, यह अंग्रेजों द्वारा रद्द कर दिया गया था और मध्य प्रांत का हिस्सा बन गया था। 1857 के विद्रोह के दौरान इस क्षेत्र के नेता सक्रिय थे और उन्होंने आदिवासियों को अंग्रेजों की दमनकारी वन नीति के खिलाफ भड़काया। स्वतंत्रता के बाद, छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश में मिला दिया गया और 2000 में इसे स्वतंत्र राज्य का दर्जा मिला और जिसके बाद यह भारत का 26 वां राज्य बन गया।

प्राचीन छत्तीसगढ़ का इतिहास

प्रागैतिहासिक काल:

इसे पाषाण काल के नाम से भी जाना जाता है। इस काल में पुरातत्विक वस्तुओ के आधार पर इतिहास लिखा गया है। जैसे चित्रकारी, किसी वस्तु का प्रतिरूप, खुदाई के आधार पर मिले साक्ष आदि आधार पर इतिहास को नया मोड़ मिलता है।

इस काल को हम अध्ययन की दृष्टि से चार भागों में बांटा गया है:

1) पूर्व पाषाण काल– इस काल के साक्ष रायगढ़ के सिंघनपुर गुफा तथा महानदी घाटी से मिलते हैं।

2) मध्य पाषाण काल रायगढ़ के काबरा पहाड़ में लाल रंग की छिपकिली, कुल्हाड़ी, घड़ियाल आदि के चित्र प्राप्त हुए।

3) उत्तर पाषाण काल रायगढ़ के महानदी घाटी तथा सिंघनपुर की गुफा और बिलासपुर के धनपुर क्षेत्र में।

4) नव पाषाण काल राजनांदगांव- चितवाडोंगरी रायगढ़ के टेरम और दुर्ग के अर्जुनी। इस काल में लोगों द्वारा अस्थाई कृषि करना प्रारम्भ कर लिया था।

वैदिक काल (1500-600 ईशा पूर्व):

छत्तीसगढ़ में इस काल का कोई साक्ष्य नही मिलता है। वैदिक काल को दो भागों में बांटा गया है –

1) ऋग्वैदिक काल (1500-1000.पू.)- कोई साक्ष्य नही मिलता।

2) उत्तर वैदिक काल (1000-600 .पू.)- मान्यता है कि आर्यो का प्रवेश छत्तीसगढ़ में हुआ। नर्मदा नदी को रेवा नदी कहने का उल्लेख मिलता है।

रामायण काल:

इस काल में छत्तीसगढ़ दक्षिण कोशल का भाग था। इसकी राजधानी कुशस्थली थी।

● भानुमंत की पुत्री कौशल्या का विवाह राजा दशरथ से हुआ।

● रामायण के अनुसार राम के द्वारा अपना अधिकांश समय सरगुजा के रामगढ की पहाड़ी, सीताबेंगरा की गुफा तथा लक्षमनबेंगरा की गुफा में व्यतीत किया गया।

● खरौद में खरदूषण का साम्राज्य था।

● बारनवापारा (बलौदाबाजार) में ‘तुरतुरिया’ बाल्मीकि आश्रम जहां लव-कुश का जन्म हुआ था।

● सिहावा में श्रींगी ऋषि का आश्रम था। लव-कुश का जन्म स्थल मना जाता है।

● शिवरीनारायण में साबरी जी ने श्रीराम जी को झूठे बेर खिलाये थे ।

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शिवरीनारायण में साबरी जी ने श्रीराम जी को झूठे बेर खिलाये थे ।

● पंचवटी (कांकेर) से सीता माता का अपहरण होने की मान्यता है ।

● राम जी के पश्चात कोशल राज्य दो भागों में बंट गया –
1) उत्तर कोशल- कुश का साम्राज्य
2) दक्षिण कोशल- वर्तमान छत्तीसगढ़

महाभारतकाल:

महाभारत महाकाव्य के अनुसार छत्तीसगढ़ प्राककोशल भाग था। अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा सिरपुर की राजकुमारी थी और अर्जुन पुत्र बभ्रुवाहन की राजधानी सिरपुर थी।

● मान्यता है कि महाभारत युद्ध में मोरध्वज और ताम्रध्वज ने भाग लिया था।

● इसी काल में ऋषभ तीर्थ गुंजी जांजगीर-चाँपा आया था।

● इस काल की अन्य बातें:-

● सिरपुर – चित्रांगतपुर के नाम से जाना जाता है।

● रतनपुर को मणिपुर (ताम्रध्वज की राजधानी)

● खल्लारी को खल्वाटिका कहा जाता है , मान्यता है कि महाभारत का लाक्षागृह कांड यही हुआ था। भीम के पद चिन्ह (भीम खोह) का प्रमाण यही मिलता है।

महाजनपद काल (राजधानीश्रावस्ती):

इस काल में छत्तीसगढ़ चेदि महाजनपद के अंतर्गत आता था तथा छत्तीसगढ़ को चेदिसगढ़ कहा जाता था। बौद्ध ग्रन्थ अवदानशतक में ह्वेनसांग की यात्रा का वर्णन मिलता है।

मौर्य काल (322 ईशा पूर्व):

छत्तीसगढ़ कलिंग देश (उड़ीसा) का भाग था। जोगीमारा की गुफा से “सुत्तनुका और देवदत्त” की प्रेम गाथा का वर्णन मिलता है।

● जांजगीर चाँपा- अकलतरा और ठठारी से मौर्य कालीन सिक्के मिले।

● अशोक ने सिरपुर में बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया था।

● देवगढ़ की पहाड़ी में स्थित सीताबेंगरा की गुफा को प्राचीनतम नाट्यशाला माना जाता है।

सातवाहन काल:

सातवाहन शासक ब्राम्हण जाती के थे। चंद्रपुर के बार गांव से सातवाहन काल के शासक अपिलक का शिक्का प्राप्त हुआ।

● जांजगीर चाँपा के किरारी गांव के तालाब में काष्ठ स्तम्भ शिलालेख प्राप्त हुआ।

● इस काल की मुद्रा बालपुर(जांजगीर चांपा), मल्हार और चकरबेड़ा (बिलासपुर) से प्राप्त होती है।

● इस काल के समकालिक शासक खारवेल उड़ीसा का शासक था।

वाकाटक वंश (3-4 शताब्दी)

राजधानी -नंदिवर्धन

प्रसिद्ध शासक–

1) महेंद्रसेन – समुद्रगुप्त के दुवारा पराजित ।

2) रुद्रसेन

3)प्रवरसेन- चंद्रगुप्त के द्वतीय का भाठ कवी कालिदास था

4)नरेंद्रसेन – नालवंशी शासक भावदत्त को हराया।

5) पृथ्वीसेन-2 – पुष्कारी को बर्बाद किया।

6)हरिसेन

कुषाण काल:

कनिष्क के सिक्के खरसिया (रायगढ़) से प्राप्त हुए। इस काल में तांबे के सिक्के बिलासपुर से प्राप्त हुए।

गुप्त काल (319-550 AD):

● इस काल में बस्तर को महाकान्तर कहा जाता था।

● छत्तीसगढ़ को दक्षिणा पथ कहा जाता था।

मध्यकालीन छत्तीसगढ़ का इतिहास

1) कल्चुरी वंश ( रतनपुर और रायपुर शाखा)

2) फणि नागवंश (कार्वधा)

3) सोम वंश (कांकेर)

4) छिन्दकनागवंश (बस्तर)

5) काकतीय वंश (बस्तर)

1) कल्चुरी वंश (1000-1741)

संस्थापक- कलिंगराज

प्रमुख शासक-

1)कलिंगराज (1000-1020)
● राजधानी-तुम्माण
● चौतुरगढ़ के महामाया मंदिर का निर्माण कराया ।

2) कमलराज (1020-1045)

3) रत्नदेव (1045-1065)

●1050 में रतनपुर शहर बसाया व उसे राजधानी बनाया।

● महामाया मंदिर का निर्माण करवाया।

● रतनपुर में अनेक मंदिर व तालाब का निर्माण करवाया ।

● रतनपुर को कुबेरपुर भी कहा जाता है।

4) पृथ्वीदेव प्रथम

उपाधि – सकलकोशलाधिपति

●तुम्माण का पृथ्वीदेवेश्वर मंदिर का निर्माण

●रतनपुर का विशाल तालाब

●तुम्माण में बँकेश्वर मंदिर में स्थित मंडप का निर्माण करवाया।

5) जाजल्लदेव (1095-1120)

● गजशार्दूल की उपाधि धारण किया अपने सिक्के में अंकित कराया ।

● जांजगीर शहर बसाया।

● पाली के शिव मंदिर का जिर्णोधार करवाया ।

● जगतपाल इसका सेनापति था ।

● छिन्दक नागवंशी शासक सोमेश्वर को हराया ।

6) रत्नदेव द्वतीय (1120-1135)

● अनन्तवर्मन चोड्गंग (पूरी के मंदिर का निर्माण करवाया था) को शिवरीनारायण के समीप युद्ध में हराया।

7) जाजल्लदेव द्वतीय(1165-1168)

8)  जगतदेव (1168-1178)

9)    रत्नदेव तृतीय (1178-1198 )

10)  प्रतापमल्ल ( 1198-1222 )

  ● कलचुरियों का अंधकार युग कहलाता है।

11) बहरेंद्र साय (1480-1525 )

● कोसगई माता का मंदिर बनवाया ।

12)  कल्याण साय (1544-1581 )

● अकबर का समकालिक था ।

● जमाबंदी प्रणाली शुरू किया । इसी के तर्ज पर कैप्टन चिस्म ने छत्तीसगढ़ को 36 गढ़ो में विभाजित किया ।

13) लक्ष्मण साय

14) तखतसिंह

● तखतपुर शहर बसाया था ।

15)  राजसिंह

● गोपाल सिंह (कवी) राज दरबार में रहता था।
   रचना- खूब तमाशा

16) सरदार सिंह

17) रघुनाथ सिंह

● अंतिम कल्चुरी शासक
● 1741 में भोसले सेनापति भास्करपंत आक्रमण कर छत्तीसगढ़ में कलचुरियो की शाखा समाप्त किया ।

18) मोहन सिंह

● मराठों के अधीन अंतिम शासक

2) फणिनाग वंश (कवर्धा)

कवर्धा के फणिनागवंश के संस्थापक अहिराज थे। 1089 (11वी सदी ) में गोपाल देव ने भोरमदेव मंदिर का निर्माण कराया था। भोरमदेव का मंदिर नागर शैली में निर्मित है। भोरमदेव एक आदिवासी देवता है। भोरमदेव के मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहते है।

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रामचंद्र देव ने 1349 (14वी सदी ) में मड़वा महल का निर्माण करवाया था। मड़वा महल  को दूल्हादेव भी कहते है।मड़वा महल एक शिव मंदिर है, जो विवाह का प्रतिक है। इसी मड़वा महल में रामचंद्र जी ने कलचुरी की राजकुमारी ‘अम्बिका देवी ‘ से विवाह किया था।

3) सोम वंश (कांकेर)

कांकेर के संस्थापक सिंहराज थे। इसके बाद व्याघराज  ने शासन किया। इसके बाद वोपदेव ने शासन किया। वोपदेव के के बाद कर्णराज, सोमराज,कृष्णराज ने शासन किया। सिहावा ताम्रपत्र , तहनाकपारा तामपत्र और कांकेर शिलालेख से   कांकेर के सोमवंश का वर्णन मिलता है।

4) छिन्दक नागवंश (बस्तर)

बस्तर में छिन्दक नागवंश की स्थापना नृपतिभूषण ने की थी। इसकी राजधानी चक्रकोट था। जिसे आज के समय चित्रकोट के नाम से जानते है। छिन्दक नागवंशी राजा लोग भोगवतीपुरेश्वर की उपाधि धारण करते थे।

प्रमुख शासक

1.नृपतिभूषण 

2.धारावर्ष  

3.मधुरतंक 

4.सोमेश्वर देव  

5.सोमेश्वर द्वितीय  

6.जगदेव भूषण  

7.हरिश्चंद्र देव (अंतिम शासक)

5) काकतीय वंश (बस्तर)

इस वंश के संस्थापक अन्नमदेव थे। इनकी राजधानी मान्घ्यता हुआ करता था। अन्नमदेव ने दंतेवाड़ा की दंतेश्वरी देवी मंदिर का निर्माण कराया था। लोक गीतों में अन्नमदेव को छलकी बंश राजा कहा गया है।

प्रमुख शासक

अजमेर सिंह –

इसे क्रांति का मसीहा कहा जाता है। भोसले के अधीन नागपुर की सेना ने अजमेर सिंह पर आक्रमण कर दिया और अजमेर सिंह की हार हुई।

दरियादेव –

अजमेर सिंह के खिलाफ मराठो की सेना को दरियादेव ने ही लाया था। दरियादेव ने कोटपाड़ कि संधि की और बस्तर नागपुर रियासत के अंतर्गत रतनपुर के अधीन आ गया। इसी समय बस्तर छत्तीसगढ़ का भाग बना। कप्तान ब्लंट पहले अंग्रेज थे यात्री थे जो बास्टर के समीप आये थे, किन्तु बस्तर में प्रवेश नहीं कर पाए थे।

महिपाल देव –

इसके शासन काल में ही परलकोट का विद्रोह हुआ था। इन्होने  बोसलो को टकोली देना बंद कर दिया था। जिसके कारण ब्योंकोजी भोसले के सेनापति रामचंद्र बाघ के नेतृत्व में बस्तर में आक्रमण किया। इसमें महिपाल की हार हुई थी।

भूपाल देव –

इसके शासनकाल में मेरिया विद्रोह और तारापुर विद्रोह हुआ था

भैरव देव –

भैरव देव अंग्रेजो के अधीन प्रथम शासक। भैरव देव के शासन काल के समय सन 1856  में छत्तीसगढ़ के पहले डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स इलियट पहली बार बस्तर आया था।

रानी चोरिस –

छत्तीसगढ़ की प्रथम विद्रोहणी रानी चोरिस को कहते है।

रूद्रप्रताप देव –

रुद्रप्रताप देव ने राजकुमार कालेज रायपुर से पढाई की और 1908 में इसका राज्य अभिषेक हुआ था। इन्होने ही जगदलपुर शहर बसाया था। 1910 में इन्ही के शासनकाल के समय में भूमकाल विद्रोह हुआ था। एवं घैटीपोनि प्रथा प्रचिलत हुई थी।

प्रफुल्ल कुमारी देवी

छत्तीसगढ़ की पहली और एक मात्र महिला शासिका प्रफुल्ल देवी थी। जिनकी राज्य अभिषेक 12 साल की उम्र में ही हो गया था।

प्रवीरचंद भंजदेव

आखरी काकतीय शासक यही थे। 1948 में बस्तर रियासत का भारत संघ में विलय हो गया।

आधुनिक कालीन छत्तीसगढ़ का इतिहास

छत्तीसगढ़ में मराठा शासन की स्थापना

1. बिम्बजी भोसला (1758 – 87)

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  • बिम्बाजी भोसला  रायपुर राज्य के  अंतर्गत छत्तीगसढ़ का प्रथम मराठा शासक  थे
  • उन्होंने  न्याय संबंधी सुविधा के लिए रतनपुर में नियमित न्यायालय की  स्थापना की तथा
  • अपने शासन काल मे राजनांदगांव तथा खुज्जी नामक दो नई जमीदरियो का निर्माण  किया
  • रतनपुर में  रामटेकरी  मंदिर का निर्माण  एवम विजय दशमी पर स्वर्ण पत्र देने की प्रथा का आरंभ किया |
  • इस समय कौड़ी मुद्रा का प्रचलन था उसके स्थान पर नागपुुुरी मुद्वा का प्रचलन करवाया |
  • बिम्बा जी ने  प्रशासनिक दृस्टि से रतनपुर और रायपुर को एक कर छत्तीसगढ़ राज्य की संज्ञा प्रदान किया था  तथा  रायपुर स्थित दूधाधारी मठ का पुनर्निर्माण करवाया |
  • बिम्बाजी ने यहां मराठी भाषा, मोड़ी लिपि और उर्दू भाषा को प्रचलित कराया
  • सन 1787 में बिम्बाजी की मृत्यु हो गई, इसके पश्चात उनकी पत्नी उमाबाई सती हो गई थी|

2. व्यंकोजी भोसला (1787 -1811 .)

  • बिम्बाजी की मृतयु के बाद व्यंकोजी को कि छत्तीसगढ़ का राज्य प्राप्त हुआ |
  • व्यंकोजी ने राजधानी रतनपुर में रहकर पूर्व की भांति प्रत्यक्ष शासन करने की अपेक्षा नागपुर में रहकर शासन संचालन करने का निश्चय किया |
  • व्यंकोजी यहाँ का शासन सूबेदारों के माध्यम से चलाने लगे |
  • यहीं से छत्तीसगढ़ में सूबेदार पद्धति अथवा सूबा शासन का सूत्रपात हुआ |
  • यह पद्धति छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण होने तक विद्यमान रही |
  • छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के संस्थापक व्यंकोजी भोसला की 1811 में बनारस में मृत्यु हो गई |

3. अप्पा साहब (1816 – 1818 ई.)

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  • व्यंकोजी भोसला की मृत्यु के पश्चात अप्पा साहब छत्तीसगढ़ के नए शासक नियुक्त किये गए |
  • अपनी नियुक्ति के पश्चात अप्पा साहब ने छत्तीसगढ़ के तत्कालिक सूबेदार बीकाजी गोपाल (1809 -1817) से बहुत बड़ी राशि की मांग की , परन्तु जब बीकाजी गोपाल ने देने में असमर्थता प्रकट की तो अप्पा साहब ने उसे पद से हटा दिया |

4. सूबा शासन (1787 – 1818 )

  • छत्तीसगढ़ में स्थापित यह सूबा शासन प्रणाली मराठों की उपनिवेशवादी नीति का परिचायक थी |
  • सूबेदार मुख्यालय रतनपुर में रहकर सम्पूर्ण कार्यो का संचालन करते थे |
  • यह पद न तो स्थायी था न ही वंशानुगत, इनकी नियुक्ति ठेकेदारी प्रथा के अनुसार होती थी जो व्यक्ति छत्तीसगढ़ से सर्वाधिक राशि वसूल कर नागपुर भेजने का वादा करता था उसे सूबेदार नियुक्त कर दियाजता था 
  • इस दौरान छत्तीसगढ़ में कुल 8 सूबेदार नियुक्त किये गए थे|

महिपत राव दिनकर(1787 – 90) –  छत्तीसगढ़ में  नियुक्त  होनेवाला प्रथम सूबेदार था | इसके शासन काल मे फारेस्टर नामक यूरोपीय यात्री छत्तीसगढ़ आया था | इसके शासन की सारी शक्तियां बिम्बाजी भोसला की विधवा आनंदी बाई के  हाथ मे  था|

विठ्ठल राव दिनककर  (1790 – 96) – ये इस क्षेत्र के दूसरे सूबेदार नियुक्त हुए | छत्तीसगढ़ में परगना पद्धति  के जनक कहलाते हैं | ये पद्धति 1790 से 1818 तक चलती रही | इस पद्धति के अंतर्गत प्राचीन प्रशानिक इकाई को समाप्त कर  समस्त छत्तीगढ़ को परगनों में विभाजित कर दिया गया , जिनकी संख्या 27 थी | परगने का प्रमुख अधिकारी कमविसदर  कहलाता था | इसके शासन काल मे यूरोपीय यात्री कैप्टन ब्लंट 1795 में छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी |

केशव गोविंद (1797 -1808) –  यह लंबी अवधि तक छत्तीसगढ़ का सूबेदार था | इसके काल मे यूरोपीय यात्री कोलब्रुक ने छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी |

यादव राव दिनकर (1817 – 1818) –  छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के दौरान का अंतिम सूबेदार था | 1818 से छत्तीसगढ़ ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया और सूबा शासन स्वयं समाप्त  हो गया, ( 1830 के बाद पुनः 1830 -54 ) के मराठा अधिपत्य के दौरान सूबेदारी पद्धति प्रचलित रही|

5. छत्तीसगढ़ में  ब्रिटिश नियंत्रण (1818 – 1830)

  • 1818 में  तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध मे पराजित होने के बाद छत्तीसगढ़ में मराठा शासन समाप्त हो गया |
  • इस युद्ध के बाद नागपुर की संधि के साथ छत्तीसगढ़ अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश नियंत्रण में आ  गया |
  • ब्रिटिश रेजिडेंट जेनकिन्स ने नागपुर राज्य में व्यवस्था हेतु घोषणा की , जिसके अनुसार उन्हें रघु जी तृतीय के वयस्क होने तक नागपुर राज्य अपने हाथ मे लेना था |
  • इस घोषणा के साथ ही छत्तीसगढ़ का नियंत्रण भी ब्रिटिश नियंत्रण में चला गया |

कैप्टन एडमण्ड(1818)  –  छत्तीसगढ़  में नियुक्त होने वाले प्रथम अधीक्षक

कैप्टन  एग्न्यु (1818 -25) – कैप्टोनन एडमण्ड के बाद अधीक्षक हुए | इन्होंने 1818 में राजधनी परिवर्तन कर नागपुर से रायपुर  कर दी | रायपुर पहली बार ब्रिटिश अधीक्षक का मुख्यालय बना | इनके शासन काल मे सोनाखान के जमीदार रामराय ने 1819 ई में विद्रोह किया था | गेंदसिंह का परलकोट विदेओह भी इसी समय हुआ था । कैप्टन एग्न्यु ने छत्तीसगढ़ के 27 परगनों  को पुनर्गठित कर इन्हें केवल 8  परगनों (रतनपुर, रायपुर, धमतरी , दुर्ग ,धमधा, नवागढ़ ,राजहरा ,खरौद) में सीमित कर दिया | कुछ समय बाद बालोद को भी परगना बना दिया  इस प्रकार परगनों की संख्या 9 हो गई | परगनों का प्रमुख पदाधिकारी को कमविसदर कहा जाता था |

कैप्टन सैंडिस  छत्तीसगढ़  में अंग्रेजी वर्ष को मान्यता दी थी ,लोरमी तरेंगा नामक दो तहुतदारी बनाया था|

6. छत्तीसगढ़ में पुनः मराठा शासन (1830- 54)

7. छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश शासन (1854 – 1947)

  • भोसला शासक रघुजी तृतीय के वयस्क होने पर छत्तीसगढ़ पुनः भोसलो के नियंत्रण में चला गया |
  • भोसला अधिकारी कृष्णराव अप्पा को छत्तीसगढ़ का शासन सौंपा गया |
  • कृष्णाराव अप्पा छत्तीसगढ़ के प्रथम जिलेदार नियुक्त हुई |
  • 1830 में ब्रिटिश अधीक्षक क्राफोर्ड ने कृष्णराव अप्पा को इस क्षेत्र का शासन सौंप दिया 
  • इस समय भोसला शासक छत्तीसगढ़ में जिलेदार के माध्यम से शासन करते थे |
  • जिलेदार का मुख्यालय रायपुर था | इस दौरान कुल 8 जिलेदार नियुक्त हुए थे |
  • छत्तीसगढ़ में भोसलो द्वारा नियुक्त अंतिम जिलेदार गोपालराव थे | 
  • सन 1853 में रघुजी तृतीय की मृत्यु हो गई, इसके पश्चात डलहौजी ने अपनी हड़प नीति के तहत 1854 में नागपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया | इसी के साथ छत्तीसगढ़ ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल हो गया |
  • नागपुर राज्य के अंग्रेजी साम्राज्य में विलय के साथ ही 1854 में छत्तीसगढ़ प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का अंग बन गया |
  • 1 फरवरी 1855 को छत्तीसगढ़ के अंतिम मराठा जिलेदार गोपालराव ने यहां का शासन ब्रिटिश शासन के प्रतिनिधि प्रथम डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स सी इलियट को सौप दिया
  • उनका अधिकार क्षेत्र वही था जो ब्रिटिश नियंत्रक काल मे मिस्टर एग्न्यु का था
  • ब्रिटिश शाशन के अंतर्गत सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ सूबे को एक जिले का दर्जा प्रदान किया गया जिसका प्रमुख अधिकारी डिप्टी कमिश्नर कहा गया
  • छत्तीसगढ़ में डिप्टी कमिश्नर ने यहां तहसीलदारी व्यवस्था का सूत्रपात किया |
  • छत्तीसगढ़ जिले में तीन तहसीलों का निर्माण किया गया –  रायपुर ,धमतरी और रतनपुर |
  • 1 फरवरी 1857 को तहसीलों का पुनर्गठन कर उनकी संख्या बढ़ाकर 5 कर दी गयी |
  • रायपुर ,धमतरी ,रतनपुर , धमधा .नवागढ़ | कुछ समय बाद  धमधा के स्थान पर दुर्ग को तहसील मुख्यालय बनाया गया |
  • प्रशासनिक सुविधा हेतु 2 नवम्बर 1861 को नागपुर और उसके अधिनस्त क्षेत्रों को मिलाकर ” सेेन्ट्रल प्रोविंस” का गठन किया तथा उसका मुख्यालय नागपुर  रखा गया
  • 1893 – रायपुर में राजकुमार कॉलेज की स्थापना की गयी |
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रायपुर में राजकुमार कॉलेज की स्थापना की गयी
 छत्तीसगढ़ की संस्कृतिऔर परम्परा – Culture and tradition of Chhattisgarh in Hindi

छत्तीसगढ़ अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है जो इस खूबसूरत राज्य के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है। छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक जीवन में पारंपरिक कला और शिल्प, आदिवासी नृत्य, लोक गीत, क्षेत्रीय त्योहार और मेले और सांस्कृतिक उत्सवों के विविध रूप शामिल हैं। मुख्य रूप से, छत्तीसगढ़ में उन आदिवासी लोगों का कब्जा है, जिन्होंने अपनी समृद्ध आदिवासी संस्कृति को मामूली और धार्मिक रूप से संरक्षित किया है। छत्तीसगढ़ राज्य का पूर्वी भाग उड़िया संस्कृति से प्रभावित है। राज्य के लोग पारंपरिक हैं और अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और मान्यताओं का पालन करते हुए सरल तरीके से जीने में विश्वास करते हैं।

जो उनके भोजन, त्योहारों और मेलों, वेशभूषा, गहने, लोक नृत्य और संगीत में भी देखा जा सकता है।

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छत्तीसगढ़ की भाषा और धर्म – Chhattisgarh language and religion in Hindi

भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ में 18 मिलियन लोगों द्वारा बोली जाने वाली प्रमुख भाषा छत्तीसगढ़ी और इंडो आर्यन भाषा है। लेकिन इनके अलावा खल्टाही, सरगुजिया, लरिया, सदरी कोरबा, बैगानी, कलंगा, भूलिया और बस्तरी जैसी भाषायों का प्रयोग भी किया जाता है। यदि हम छत्तीसगढ़ के धर्म की बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार, छत्तीसगढ़ में 93.25% हिन्दू, 2.02 % मुस्लिम, 1.92% ईसाई और 0.27% सिख धर्म के लोग निवास करते है।

छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ – Tribes of Chhattisgarh in Hindi
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छत्तीसगढ़ की लगभग एक तिहाई आबादी आदिवासी है जिनमे गोंड, हल्बा, धुर्वा, कवार, सरगुजा, बिंझवार, अबूझमाड़िया जैसी जनजातियों के नाम शामिल है। अन्य में 16 प्रतिशत अनुसूचित जाति जबकि 42 प्रतिशत अन्य पिछड़ी जातियों के लोग यहाँ निवास करते हैं। राज्य के ग्रामीण इलाको में लगभग 80 प्रतिशत आबादी के लोग निवास करते है और बड़े पैमाने पर कृषि पर आधारित है।

छत्तीसगढ़ की वेशभूषा – Costumes of Chhattisgarh in Hindi

छत्तीसगढ़ की वेशभूषा राज्य में कई रंगों को प्रदर्शित करती है। यहां की वेशभूषा में लिनन, रेशम और कपास जैसे कपड़े का उपयोग किया जाता है। छत्तीसगढ़ के शहरी इलाको में पेंट और शर्ट, साड़ी और सलवार सूट क्रमशः पुरुषों और महिलाओं द्वारा पहने जाते हैं।

छत्तीसगढ़ की जनजातीय वेशभूषा काफी अनोखी है, जो राज्य की वेशभूषा को एक विशिष्ट पहचान प्रदान करती है और पर्यटकों के बीच रुचि पैदा करती है। आदिवासी पुरुष और महिलाएं उज्ज्वल और रंगीन पोशाक पहनते हैं रंगों का उपयोग यहां पहने जाने वाले परिधानों की विशिष्ट विशेषता है। कपड़ो के अलावा आदिवासी आबादी द्वारा व्यापक रूप से धातु की कास्ट, चांदी की घुंघरू, चंकी लकड़ी की चूड़ियाँ आदि जैसे गहने भी पहने जाते हैं। जबकि त्योहारों के दौरान आदिवासी वेशभूषा का अद्भुत प्रदर्शन देखा जा सकता है जो काफी आकर्षक होता है।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहार और उत्सव – Famous Festivals of Chhattisgarh in Hindi

छत्तीसगढ़ राज्य अपने विभिन्न बहुरंगी त्योहारों और समारोहों के लिए जाना जाता है यहाँ मनाये जाने वाले उत्सवो और त्योहारों में राज्य की संस्कृति और आदिबासी परम्परायों की झलक देखने को मिलती है। छत्तीसगढ़ में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में स्तर दशहरा, बस्तर लोकोत्सव, कोरिया मेला, फागुन वाडई, चंपारण मेला, मडई महोत्सव, गोंचा महोत्सव, पोला महोत्सव, हरेली महोत्सव, नारायणपुर मेला, भोरमदेव महोत्सव, तीज महोत्सव ने नाम शामिल हैं।

छत्तीसगढ़ का खान पान – Local Food Of Chhattisgarh in Hindi

छत्तीसगढ़ की खाद्य संस्कृति का एक बड़ा हिस्सा चावल, बाजरा, ज्वार जैसी मुख्य फसलें हैं जिनसे मिलकर छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय व्यंजन तैयार होते है। राज्य का भोजन अपने पड़ोसी राज्यों से भी अत्यधिक प्रेरित है इसलिए, छत्तीसगढ़ के खान पान में पड़ोसियों राज्यों का स्वाद भी चखने को मिलता है। यहाँ के भोजन में कुरकुरे जलेबी, एक जिनी राखिया बदी और एक बहुत ही पारंपरिक पेठा शामिल है। मक्का, गेहूं और ज्वार यहां की प्राथमिक और मुख्य खाद्य सामग्री है। अरहर की दाल और चना दाल के साथ तैयार होने वाली विशेष बाफौरी राज्य में सबसे लोकप्रिय व्यंजन हैं। मिंजरा बेदी, कुसली, काजू बर्फी, साबुदाना की खिचड़ी, चीच भाजी, कोहड़ा, लाल भाजी, बोहर भाजी ऐसी व्यंजन हैं जो यहां के व्यंजनों को परिभाषित करते हैं। स्थानीय व्यंजनों के विभिन्न स्वादों के अलावा, छत्तीसगढ़ के रेस्तरां कई अन्य व्यंजनों को भी प्रदान करते हैं।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटक स्थल – Best Places To Visit In Chhattisgarh in Hindi
भिलाई में पर्यटन स्थल | Tourist Places in Bhilai 
1. भिलाई का प्रमुख धार्मिक स्थल बम्बलेश्वरी मंदिर- Bhilai Ka Pramukh Dharmik Sthal Bambaleshwari Temple In Hindi

बम्बलेश्वरी मंदिर भिलाई से तोड़ी दूर एक पहाड़ी पर स्थित है. यह एक मह्ब्त्पूर्ण धार्मिक स्थल है. इसे बड़ी बम्ब्लेश्वरी के रूप में भी जाना जाता है. यह मंदिर डोंगरगढ़ में स्थित है और चोटी बम्ब्लेश्वरी के नाम से दुसरे मंदिर से 1/2 km दूर है.

ऐसा कहा जाता है की लगभग 2220 साल पहले एक स्थानीय राजा विरसेना ने कई पूजों किया और एक संतान पाने के लिए देवताओ की पूजा की. ठीक एक वर्ष के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, तो राजा ने इसे भगवान शिव और पार्वती का आशीर्वाद मान कर यहाँ मंदिर का निर्माण किया.

2. सियादेवी- Siyadevi

सियादेवी अपने सीता मैया मंदिर के लिए जाना जाता है. यह एक सुरभ्य स्थान के बीच में स्थित है. यदि आप जुलाई और फरबरी के बीच जगह का दौरा कर रहें हैं तो आप प्राकृतिक झरने के सुन्दर दृश्य का आनंद ले सकते हैं. सियादेवी को उन स्थानों में से एक माना जाता है जहा राम, लक्ष्मण और सीता जी ने अपने वनवास के दौरान रहते थे.

3. भिलाई में घुमने की जगह तेंदुला- Bhilai Me Ghumne Ki Jagah Tendula In Hindi

तेंदुला भिलाई से 60 km की दुरी पर स्थित है. तेंदुला को एक मानव निर्मित चमत्कर के रूप में जाना जाता है. यह बांध तेंदुला नदी के ऊपर बना है. ये जगह पिकनिक के लिए आदर्श माना जाता है.

4. मैत्री बाग- Maitri Bagh

यह एक चिड़ियाघर, पार्क और वयस्कों और बच्चो के लिए एक शांत आकर्षण है. यह भिलाई क्षेत्र का सबसे बड़ा चिड़ियाघर है. यहाँ मनोरंजन के लिए कई प्रकार के विकल्प है. मैत्री बाग को 1972 के वर्ष में  यू एस एस आर और भारत के बीच दोस्ती के प्रतिक के रूप में स्थापित किया गया था और भिलाई स्टील प्लांट, सेल ने इसे विकसित किया था. इसे व्यापक रूप से फ्रेंडशिप पार्क के रूप में भी जाना जाता है और भारी संख्या में पर्यटकों घुमने के लिए आते हैं.

5. हाजरा- Hajra

हाजरा भिलाई से 100 km दूर एक छोटा सा स्टील सिटी और घने जंगल और पहाडियों के बीच में स्थित है. हाजरा जलप्रपात 150 m की उची पर एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है. स्थानियों लोगो के साथ साथ पर्यटकों के बीच एक पिकनिक स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है.

6. सिविक सेंटर- Civic Center

सिविक सेंटर सामाजिक गतिविधिया और मनोरंजन से भरपूर, सिविक सेंटर भिलाई का एक प्रसिद्ध खरीदारी केंद्र है. इस क्षेत्र में एक गुंबद सुपरमार्केट भी है जहा कला प्रदर्शनियां आयोजित की जाती है. सिविक सेंटर एक ओपन एयर थिएटर भी है जहा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ साथ संगीतमय रातो के लिए मंच के रूप में कार्य करता है.

7. भिलाई का धार्मिक स्थल गंगा मैया मंदिर- Bhilai Ka Dharmik Sthal Ganga Maiya Temple In Hindi

भिलाई से 60 km दूर स्थित झालमाला में गंगा मैया मंदिर से बहुत ही रोचक कथा जुडी हुई है. कहानी के अनुसार स्थानीय मछुआरे ने मंदिर के देवता को अपने जाल में पाया लेकिन इसे ठीक करने के बजाय इसे अनदेखा कर दिया. बाद में उसी गावं में रहने वाले एक व्यक्ति ने सपना देखा जिसमे मूर्ति ने उस व्यक्ति को गाव के पास एक झोपरी में पुन: प्राप्त करने का आदेश दिया था. कुछ समय बाद भीकम चंदा तिवारी द्वारा एक मंदिर की स्थापना की गयी.

8. भिलाई के तीर्थ स्थल उवसाग्घरम पार्श्वावा तीर्थ- Bhilai Ke Tirth Sthal Uwasaggharam Parshwa Teerth In Hindi

यह नागपुरा में जैन मंदिर है, जो वर्ष 1995 में स्थापित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है. मंदिर के अलावा, यह स्थल एक बगीचे, मंदिरों, योग केंद्र और गेस्ट हाउस के लिए भी है जो की शोनाथ नदी के तट पर बना हुआ है. मंदिर की सबसे आकर्षक विशेषता इसके 30 फिट उचे प्रवेश द्वार और श्री पार्श्वनाथ की प्रतिमा है. इस स्थल में पूर्णिमा के दिन बड़ी संख्या में भक्तो की बहुत भीड़ होती है.

बिलासपुर में घूमने की जगह – Famous Tourist Places of Bilaspur In Hindi.
नैना देवी मंदिर – Naina Devi Temple Bilaspur In Hindi.

नैना देवी मंदिर बिलासपुर में स्थित श्रद्धालुओं के लिए एक बेहद ही आकर्षण से भरा पर्यटन स्थल हैं। इस मंदिर के पहाड़ के चोटियों पर स्थित होने के कारण यहां श्रद्धालुओं के साथ-साथ पर्यटक भी घूमने के लिए जाते हैं। इतिहासकारों के अनुसार बताया जाता है कि यह वही मंदिर है जहां माता सती ने खुद को अग्नि को समर्पित कर दिया था। आज के समय में इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ की चोटियों से होते हुए मार्ग बनाया गया है। इस मंदिर में हर साल श्रद्धालुओं की काफी ज्यादा भीड़ देखने को मिलती हैं।

देवरानी जेठानी मंदिर बिलासपुर – Devrani Jethani Temple Bilaspur In Hindi.

देवरानी जेठानी मंदिर बिलासपुर का एक धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल है। यहां पर दो प्राचीन मंदिर देखने को मिलती हैं, जो कि देवरानी और जेठानी के नाम से प्रचलित है। यह मंदिर रूद्र शिवा के लिए जाना जाता है, जो कि भगवान शिव को समर्पित है।

यहां पर रूद्र शिवा की बहुत ही अद्भुत अलग-अलग मुख्य वाले प्रतिमा बनी हुई है। यह देवरानी जेठानी नाम का मंदिर बिलासपुर-राजपुर हाईवे के किनारे अमरी गांव के समीप बिलासपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में कलाकृतियां कुछ इस तरह से की गई है कि देखने वाले देख कर भावुक हो जाते हैं।

डिंडेश्वरी मंदिर मल्हार – Maa Dindeshwari Temple Malhar in Hindi.

डिंडेश्वरी मंदिर मल्हार में मां डिंडेश्वरी की काले रंग की ग्रेनाइट की बहुत ही अच्छी एवं आकर्षक प्रतिमा बनी हुई है। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यहां आकर आप जो कुछ भी मन्नत मांगते हैं वह पूरी हो जाती हैं। इसी वजह के कारण यहां डिंडेश्वरी मंदिर में लोग भारत के अलग-अलग कोणों से आते हैं। इस मंदिर की खूबसूरती की बात करें तो इसके सामने बने तालाब और इस मंदिर की बनावट काफी खूबसूरत एवं आकर्षण से भरा हैं। मां डिंडेश्वरी का यह मंदिर करीब 600 साल पुराना मल्हार शहर का एक पर प्रमुख धार्मिक स्थल है।

कानन पेंडारी उद्यान बिलासपुर – Kanan Pendari Garden Bilaspur in Hindi.

कानन पेंडारी उधान बिलासपुर का एक बहुत ही अच्छी घूमने की जगह है। यह उधान मुंगेली-बिलासपुर हाईवे पर ही स्थित है। इस उद्यान में आपको अलग-अलग प्रजाति के जानवर जैसे सफेद बाघ, गैंडा, जंगली सूअर, हिरण, भालू, दरियाई घोड़ा, तेंदुआ, इमू, शाही और भी इसी तरह के जानवर विभिन्न प्रकार के पक्षी, मछली और सर्प के भी अलग-अलग प्रजातियां देखने को मिल जाएगी।

कानन पेंडारी उधान का खुलने का समय 9:00 am सुबह से 5:00 pm बजे शाम तक निर्धारित किया गया है। यह उधान सोमवार को बंद रहता है। इस उधान में प्रवेश करने के लिए एक व्यक्ती को ₹20 एवं बच्चे को ₹10 एंट्री फी के रूप में देना पड़ता है।

अमरकंटक बिलासपुर – Amarkantak Bilaspur in Hindi.

अमरकंटक में आपको बहुत सारे पर्यटन स्थल देखने को मिल जाएंगे जैसे- कपिलधारा, दुध धारा, जैन मंदिर, अमरेश्वर महादेव मंदिर, कल्चुरी कालीन मंदिर, कबीर चबूतरा, माई की बगीचा इसी प्रकार के और भी अन्य कई दर्शनीय एवं पर्यटन स्थल देखने को मिल जाएंगे ।अमरकंटक बिलासपुर शहर के ही पास में स्थित एक प्रमुख पर्यटन स्थल माना जाता है, जो लगभग बिलासपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।

कोरी बांध बिलासपुर – Kori Dam Bilaspur in Hindi.

कोरी बांध को घोंघा बांध के नाम से भी जाना जाता है। इसे बिलासपुर के पिकनिक स्पॉट के लिए भी जाना जाता है। यह एक जलाशय है, जो कि बिलासपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। यहां पर लोग पिकनिक मनाने एवं यहां के वातावरण का लूफ उठाने दूर-दूर से आते हैं। यहां से सूर्यास्त का दृश्य काफी मनमोहक एवं आकर्षक दिखता है।

खूंटाघाट – khutaghat bilaspur in Hindi.

खुटाघाट खारून नदी पर बना रिवर डैम के लिए प्रसिद्ध है। खुटाघाट बिलासपुर-अंबिकापुर हाईवे के पास बिलासपुर से 33 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह जगह पिकनिक स्पॉट के लिए भी जाना जाता है। यहां पर जाने के उपरांत आपको खूबसूरत फूल एवं वातावरण के साथ-साथ यहां पर वोटिंग की भी सुविधा देखने को मिल जाएगी।

रायपुर में घूमने की जगह – Famous Tourist Places of Raipur In Hindi.
पुरखौती मुक्तांगन

पुरखौती मुक्तांगन विभिन्न आदिवासियों के प्रदर्शन के साथ-साथ विभिन्न लोक कला और अन्य छत्तीसगढ़ खजाने के जीवन-समान आंकड़े प्रदर्शित करता है। इसे राज्य की महत्वाकांक्षी विजन 2020 योजना में शामिल किया गया है। यह छत्तीसगढ़ की मूल जनजातियों की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं के बारे में जानने और उस ज्ञान को बच्चों तक पहुंचाने के लिए एक उत्कृष्ट स्थान है। यह एक रमणीय और दिलचस्प पर्यटक आकर्षण है जहाँ आप अपने परिवार को आराम से मैदान में टहलने के लिए ले जा सकते हैं। गैलरी में करवाधा, भोरम देव, दंतेवाड़ा में माता दंतेश्वरी मंदिर, बस्तर के चित्रकोट, जगदलपुर वन और विभिन्न पारंपरिक नृत्य मॉडल के लघु मॉडल भी प्रदर्शित हैं। पुरखौती मुक्तांगन की मुख्य विशेषता यह है कि यह पूरे छत्तीसगढ़ राज्य को एक छत के नीचे लाती है। पार्क के बाहर, एक रेस्तरां और विभिन्न स्नैक विकल्प हैं। पुरखौती मुक्तांगन भी रायपुर में फिल्मांकन के लिए एक लोकप्रिय स्थान रहा है। जब आप यहां होते हैं, तो इस बात की अच्छी संभावना होती है कि आप कुछ स्थानीय सितारों या फिल्म की शूटिंग में भाग लेंगे।

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स्वामी विवेकानंद सरोवर

बूढ़ा तालाब जिसका अर्थ है “प्राचीन झील,” स्वामी विवेकानंद सरोवर का दूसरा नाम है। यह घूमने के लिए एक शांतिपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह विभिन्न प्रकार के पेड़ों, विशेष रूप से ताड़ के पेड़ों से घिरा हुआ है। पार्क के बाहर स्थित कई फूड स्टॉल सस्ते, उच्च गुणवत्ता वाले स्ट्रीट व्यंजन पेश करते हैं। इसके अलावा, झील एक पसंदीदा पिकनिक स्थल के साथ-साथ एक जॉगिंग हेवन भी है। झील की यात्रा का सबसे अच्छा समय शाम को सूर्यास्त से कुछ समय पहले का है। स्वामी विवेकानंद की मूर्ति को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में 37 फीट ऊंची विवेकानंद की सबसे बड़ी मूर्ति के रूप में शामिल किया गया है। कांस्य प्रतिमा कला का एक काम है। सूर्यास्त के बाद, इस विशाल प्रतिमा का प्रतिबिंब झील के ऊपर गिरता है, जिससे एक मनमोहक दृश्य बनता है। रात में फव्वारा उज्ज्वल रूप से जलाया जाता है, और रंगीन रोशनी क्षेत्र को सुशोभित करती है। झील पर नौका विहार भी थोड़े शुल्क पर उपलब्ध है।

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एमएम फन सिटी

एमएम फन सिटी उन सभी के लिए वन-स्टॉप शॉप है जो अंतहीन मस्ती और आनंद में डूब जाना चाहते हैं। यह छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा जल मनोरंजन पार्क है, जो राजधानी शहर के बाहरी इलाके में स्थित है। पार्क शहर की हलचल से दूर एक शांत और शांत वातावरण में स्थित है। यह आगंतुकों के साथ पसंदीदा है, जिसमें मनोरंजक जल स्लाइड, एक पारिवारिक पूल, एक लहर पूल, एक बारिश नृत्य, एक रेस्तरां और यहां तक ​​कि एक विशेष बच्चों का क्षेत्र भी शामिल है। यह अपनी रोमांचकारी सवारी, अत्याधुनिक सुविधाओं और असाधारण ग्राहक सेवा के लिए जाना जाता है।

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नंदन वन चिड़ियाघर

नया रायपुर में नंदन वन चिड़ियाघर, शहर के सबसे लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक है। जानवरों की रक्षा और संरक्षण के प्राथमिक लक्ष्य के साथ चिड़ियाघर में वन्यजीवों की एक विविध श्रेणी है। बच्चों के साथ दिन बिताने के लिए यह एक शानदार जगह है क्योंकि यहां जंगल सफारी और बोटिंग ट्रिप हैं। जीवों को जंगल में घूमते देखना दिलचस्प है, और यह आगंतुकों को विभिन्न प्रजातियों के लिए भी उजागर करता है जो कम प्रसिद्ध हैं और विलुप्त होने के जोखिम पर हैं। इसके अलावा, चिड़ियाघर की सुविधाएं आरामदायक और सस्ती दोनों हैं।

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महंत घासी मेमोरियल संग्रहालय

महंत घासी मेमोरियल संग्रहालय, जो कच्छरी चौक चौराहे पर स्थित है, मामूली है लेकिन रायपुर के समृद्ध इतिहास से भरा हुआ है। इस सुव्यवस्थित संग्रहालय में मानवशास्त्रीय और प्राकृतिक इतिहास की कलाकृतियों, शिलालेखों, सिक्कों, मूर्तियों, मॉडलों और अन्य वस्तुओं का उल्लेखनीय संग्रह है। दो मंजिलों पर पांच गैलरी हैं, साथ ही एक बड़ी लाइब्रेरी भी है जिसे आप मिस नहीं करना चाहेंगे। कुछ सस्ते लेकिन स्वादिष्ट जनजातीय व्यंजनों को आज़माने के लिए भूतल पर संग्रहालय के ओपन-एयर रेस्तरां में जाएँ। आप रायपुर के इतिहास, संस्कृति के बारे में बहुत कुछ जानेंगे और यह कैसे बड़े महानगर के रूप में विकसित हुआ जो अब है। संग्रहालय की प्रवेश लागत Rs. 5 है।

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सिटी सेंटर मॉल

रायपुर का सिटी सेंटर मॉल मनोरंजन और वाणिज्य का मिश्रण है। वुडलैंड, एडिडास, ली कूपर, रैंगलर और अन्य ब्रांड खरीदने के लिए उपलब्ध हैं। एक दिन की खरीदारी के बाद, फ़ूड कोर्ट के विशाल क्षेत्र में एक त्वरित काटने या एक बहु-पाठ्यक्रम भोजन के लिए रुकें। अब अगला क्या होगा? मॉल में पांच स्क्रीन वाला मल्टीप्लेक्स भी है जहां आप अपने दोस्तों और परिवार के साथ नवीनतम रिलीज देख सकते हैं।

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रायगढ़ में घूमने की जगह – Famous Tourist Places of Raigarh In Hindi.
नैना देवी मंदिर – Naina Devi Temple Bilaspur In Hindi.

पहाड़ मंदिर रायगढ़ जिले का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। पहाड़ मंदिर को श्री संकटमोचन बजरंगबली मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है। मंदिर में हनुमान जी, दुर्गा जी और शंकर भगवान जी का मंदिर देखने के लिए मिलता है। यह मंदिर बहुत ही सुंदर है। यह मंदिर ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। रायगढ़ जिले के लोग इस मंदिर को पहाड़ मंदिर के नाम से जानते हैं। इस मंदिर से पूरे रायगढ़ शहर का सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलता है। इस मंदिर में मंगलवार के दिन बहुत सारे भक्त हनुमान जी के दर्शन करने के लिए आते हैं। 

पहाड़ मंदिर ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। इस मंदिर तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है। इस मंदिर की स्थापना 1980 में हुई थी। यह मंदिर बहुत सुंदर है और यहां पर आकर बहुत अच्छा लगता है। इस मंदिर में दर्शन के लिए सुबह 7 बजे से शाम के 7 बजे तक मंदिर खुला रहता है। पहाड़ मंदिर में शनिवार और मंगलवार के दिन बहुत ज्यादा भीड़ लगती है। इस दिन मंदिर ज्यादा समय तक खुला रहता है। 

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मोती महल रायगढ़ – Moti Mahal Raigarh

मोती महल राजगढ़ जिले का एक ऐतिहासिक स्थल है। यह एक सुंदर महल है। यह महल राजगढ़ जिले के राजसी परिवार का निवास स्थान हुआ करता था। अब यह महल खाली है और यहां पर कोई भी नहीं रहता है। यह महल बहुत ही सुंदर बना हुआ है और इस महल में बहुत ही सुंदर कारीगरी देखने की मिलती है। इस महल में गलियारे देखने के लिए मिलते हैं। गलियारे में जो पिलर बनाए गए हैं। उनकी नक्काशी बहुत ही सुंदर है। पिलर में फूलों की बहुत ही आकर्षक नक्काशी को बनाया गया है। 

मोती महल राजगढ़ जिले में केलो नदी के किनारे बना हुआ है।  यहां पर आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह महल तीन मंजिला है। महल के सबसे ऊपरी सिरे में क्लॉक टावर भी देखने के लिए मिलता है। आप राजगढ़ आते हैं, तो आपको इस महल में जरूर आकर घूमना चाहिए। इस महल के रंग-बिरंगे दरवाजे बहुत अच्छे लगते हैं और महल का ज्यादातर हिस्सा बंद कर दिया गया है। मगर आप इस महल को देख सकते हैं। 

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चिरमिरी में घूमने की जगह – Famous Tourist Places of Chirmiri In Hindi.

चिरमिरी भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के कोरिया जिले में स्थित एक हिल स्टेशन है। यह शुद्ध प्राकृतिक सुंदरता के बीच एक शांत, रोमांचक और शांत जगह है। समुद्र तल से लगभग 579 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह हिल स्टेशन उन सभी लोगों के लिए छत्तीसगढ़ में घूमने के लिए सबसे अच्छा पर्यटन स्थल साबित होगा, जो गर्मी से बचना चाहते हैं। हरी-भरी हरियाली हो या शक्तिशाली पर्वत चोटियाँ या असली नदियाँ, चिरमिरी आपको एक ही यात्रा में अपने आप से प्यार कर देगी। हसदेव नदी के तट पर स्थित, महान महानदी की सबसे प्रमुख सहायक नदियों में से एक, चिरमिरी भी कुछ घने जंगलों के लिए घर की सेवा करने का दावा करती है, जो बदले में वनस्पतियों और जीवों की एक विदेशी श्रृंखला है। वास्तव में, शायद इसकी प्राकृतिक सुंदरता के कारण, कई लोग इसे ‘छत्तीसगढ़ की जन्नत या स्वर्ग’ के रूप में संदर्भित करते हैं। सभी प्राकृतिक सुंदरता के अलावा, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह दर्शनीय हिल स्टेशन अपनी कई कोयला खदानों के लिए भी प्रसिद्ध है। जहां तक चिरमिरी में घूमने के आकर्षणों की बात है, तो उनमें से बहुत सारे हैं। कई प्राचीन मंदिरों से लेकर खूबसूरत नदियों से लेकर असली झरनों तक, किसी भी यात्री के लिए अपनी रुचि के अनुसार देखने और तलाशने के लिए बहुत कुछ है।

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अमृतधारा जलप्रपात – Amritdhara jalprapat in Chirmiri Hindi.

चिरमिरी हिल स्टेशन के अलावा आप यहां के आसपास के प्राकृतिक आकर्षणों की सैर का प्लान बना सकते हैं। अमृत धार जलप्रपात यहां के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में गिना जाता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से सैलानियों का आगमन होता है। यह कोरिया जिले के अंतर्गत एक आकर्षक स्थल है। यह जलप्रपात महानदी की सहायक नदी हसदो से जल प्राप्त करता है। यह झरना आदर्श रूप से महेंद्रगढ़-बायकुनथपुर रोड पर स्थित है। अमृत धारा वाटरफॉल 90.0 फीट की ऊंचाई से गिरता है। एक शानदार अनुभव के लिए आप यहां की यात्रा कर सकते हैं।

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चिरमिरी भारत की उन चुनिंदा जगहों में से हैं जहाँ जाने के लिए आपको किसी तय समय का इंतेजार नहीं करना पड़ता है। मैदानी इलाके से दूर होने की वजह से चिरमिरी का मौसम पूरे साल खुशनुमा बना रहता है। वैसे यदि आप सबसे सही समय चिरमिरी आना चाहते हैं तो आपको बरसात के मौसम में यहाँ आना चाहिए। भीषण गर्मी के बाद होने वाली बारिश में ये जगह और भी ज्यादा खूबसूरत हो जाती है। सभी झरनों में पानी में भर जाता है और सारा माहौल सुखद लगने लगता है। आप चाहें तो सर्दियों के समय भी चिरमिरी आ सकते हैं। सर्दियों की मखमली धूप में टहलते हुए हिल स्टेशन की हल्की ठंडी हवाओं का मजा आखिर किसको नहीं अच्छा लगेगा।

खैरागढ़ में घूमने की जगह – Famous Tourist Places of Khairagarh In Hindi.

यह एशिया का पहला ऐसा संस्थान है, जो कला और संगीत में उच्च शिक्षा देने हेतु स्थापित किया गया। खैरागढ़ आजादी से पहले एक छोटी-सी स्वतंत्र रियासत हुआ करती थी, जहां के राजा बीरेंद्र बहादुर सिंह और रानी पद्मावती ने ही 1956 में इस विश्वविद्यालय की नींव रखी थी। इसकी स्थापना के लिए उन्होंने अपना राजभवन दान किया था।

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बैताल रानी – Baital Rani Ghati in Hindi

बैताल रानी घाटी छत्तीसगढ़ का सबसे खतरनाक घाटी l baital rani ghati  खैरागढ़. हसीन वादियों में बहुत से गहरे राज छिपे होते हैं. छत्तीसगढ़  में ऐसी ही एक जगह हसीन वादियों से घिरी हुई है जिसका नाम बैताल रानी घाटी है.ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ, हरे-भरे घने जंगल के बीच बैताल रानी घाटी के खतरनाक मोड़ एवं गहरी खाईयां वाहनों को लील जाने के लिये हरदम तैयार रहती है. यह घाटी भय, रोमांच, आध्यात्म के साथ साथ मन को प्रफुल्लित करने वाले दृश्यो का भी सुखद अहसास कराती है. यही कारण है कि इन दिनों बड़ी संख्या में पर्यटक बैताल रानी घाटी की ओर आकर्षित हो रहे है. छत्तीसगढ़ की सबसे खूबसूरत और खतरनाक केशकाल, चिल्फी जैसी घाटियों में अब बैताल रानी घाटी का भी नाम शुमार हो गया है.

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जनश्रुति के अनुसार बैताल रानी को एक चरवाहे से प्रेम हो गया था. रानी छुप-छुप कर चरवाहे के साथ मिला करती थी. इसी बीच राजा हरिचंद को गुप्तचरों के माध्यम से बैताल रानी और चरवाहे के प्रेम संबंध की सूचना मिली. राजा हरिचंद ने इस बात की पुष्टि हेतु अपने गुप्तचरों को बैताल रानी और चरवाहे के प्रेम संबंध की पुष्टि के लिये नियुक्त किया. गुप्तचरों ने इस बात की पुष्टि कर इसकी जानकारी राजा हरिचंद को दी. इसी बीच बैताल रानी और चरवाहे को राजा के नियुक्त गुप्तचरों की सूचना मिल गई. जिसके बाद रानी और चरवाहे ने महल से भागने की योजना बनाई. एक दिन बैताल रानी ने मौका पाकर उस चरवाहे के साथ महल से भाग गई. इसकी सूचना राजा तक पहुंची तो उन्होंने बैताल रानी की खोजबीन के लिये अपने सैनिकों को अलग अलग दिशा में भेजकर स्वयं कुछ सैनिकों के साथ इस घाटी की ओर आ गये. राजा हरिचंद को बसन्तपुर के एक पर्वत में बैताल रानी और चरवाहे के छिपे होने की सूचना मिली.  बैताल रानी को एक चरवाहे से प्रेम हो गया था. रानी छुप-छुप कर चरवाहे के साथ मिला करती थी. इसी बीच राजा हरिचंद को गुप्तचरों के माध्यम से बैताल रानी और चरवाहे के प्रेम संबंध की सूचना मिली. राजा हरिचंद ने इस बात की पुष्टि हेतु अपने गुप्तचरों को बैताल रानी और चरवाहे के प्रेम संबंध की पुष्टि के लिये नियुक्त किया. गुप्तचरों ने इस बात की पुष्टि कर इसकी जानकारी राजा हरिचंद को दी. इसी बीच बैताल रानी और चरवाहे को राजा के नियुक्त गुप्तचरों की सूचना मिल गई. जिसके बाद रानी और चरवाहे ने महल से भागने की योजना बनाई. एक दिन बैताल रानी ने मौका पाकर उस चरवाहे के साथ महल से भाग गई. इसकी सूचना राजा तक पहुंची तो उन्होंने बैताल रानी की खोजबीन के लिये अपने सैनिकों को अलग अलग दिशा में भेजकर स्वयं कुछ सैनिकों के साथ इस घाटी की ओर आ गये. राजा हरिचंद को बसन्तपुर के एक पर्वत में बैताल रानी और चरवाहे के छिपे होने की सूचना मिली.

खैरागढ़ के अन्य स्थल 1. छिंदारी, 2. प्रधान पथ बैराज

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सिरपुर में घूमने की जगह – Famous Tourist Places of Sirpur In Hindi.

रायपुर और सिरपुर के बीच की दूरी 50 किलोमीटर है सिरपुर शहर मनोरम स्थान है एक पर्यटक की ख़ुशी, समर्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और महत्व है। सिरपुर कर्वधा और कांगेर के बीच सड़क पर स्थित है| सिरपुर छत्तीसगढ़ राज्य मे एक छोटा सा गावं है जो महानदी के तट पर स्थित है| यह महासमुंद्र जिले से 35 किमी दूर और रायपुर शहर से लगभग 78 किमी दूर है जो छत्तीसगढ़ की राजधानी है| यह बौद्ध धर्म का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र था। 635 ईस्वी के समय के दौरान, हियुंग त्सांग नाम के प्रसिद्ध चीनी यात्री ने इस जगह का दौरा किया। अन्य प्रसिद्ध आकर्षण गंधेश्वर मंदिर और बुद्धविहार लक्ष्मण मंदिर और संग्रहालय है| जहाँ हम शिव, वैष्णव, जैन और बुद्ध से संबंधित पुरातात्विक के साथ रखी हुई कुछ दुर्लभ मूर्तियो का संग्रह देख सकते है। सिरपुर शहर मे कई शानदार मंदिर मौजूद है। बुद्ध विहार मे हम ऐतिहासिक अवशेष और मूर्तियां देख सकते है और यह नालानाडा से भी पुराना है। और अंदर हम ध्यान के लिए छह फीट ऊंची बुद्धा प्रतिमा देख सकते हैं। जहाँ बिल्कुल अवलोकितेश्वर और मकरवाहिनी गंगा मिलते है। सुरंग टीला मंदिर सबसे अच्छे गंतव्य मे से एक है| जिसे याद नही करना चाहिये क्योकि इसमे अद्भुत संरचना है|

गंधेश्वर मंदिर

यह एक और रोचक आकर्षण है जो महानदी नदी के तट पर स्थित है। जैसा कि नाम से ही स्‍पष्‍ट है कि गंधेश्‍वर मंदिर, इस क्षेत्र के कई खंडहर मंदिरों और विहारों का इस्‍तेमाल करके बना है। उसी कारण से, मंदिर की वास्‍तुकला और नक्‍काशी वाली संरचनाओं को देखने से मन खुश हो जाता है। विभिन्न मंदिरों से ऐतिहासिक अवशेषों के संग्रह के कारण यह मंदिर बेहद सुंदर लगता है जो पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर में एक बुद्ध भगवान का मंदिर भी है जो जमीन पर छूती है। मंदिर में नटराज भगवान, गरूड़ नारायण, शिव – लीला के चित्र, रावण के चेहरे की असाधारण तस्‍वीर, महिषासुर मर्दिनी की तस्‍वीर भी लगी हुई है।

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सुरंग टीला मंदिर – Surang Tila Temple

सुरंग टीला मंदिर एक अद्वितीय और शानदार वास्तु शिल्प कौशल का चित्रण है। यह अपारदर्शी सफेद पत्थरों से निर्मित एक विशाल त्रि-पिरामिड संरचना है। ये पिरामिड सुपर-संरचित हैं प्लेटफार्मों पर जो लगभग 30-35 फीट ऊंचे हैं। प्लेटफार्मों के ऊपर हिंदू भगवान शिव को समर्पित कई मंदिर हैं। मंदिर आपको अपने एकांत में शांत और शांत कर देता है और फिर आपके भीतर जीवन शक्ति का एक नया भाव पैदा करता है। सुरंग टीला मंदिर उन लोगों के लिए एक आदर्श सप्ताहांत भगदड़ वाला स्थान है जो रोज़मर्रा के अस्तित्व की एकरसता से विराम चाहते हैं। यह स्थान कई फोटो कट्टरपंथियों और प्रकृति के प्रति उत्साही को भी आकर्षित करता है। मंदिर का निर्माण महाशिवगुप्त बलार्जुन ने सातवीं शताब्दी में करवाया था और इसका निर्माण मंदिर की वास्तुकला की पंचायतन शैली में किया गया है, जिसके केंद्र में मुख्य मंदिर और कोने में चार मंदिर हैं। मुख्य मंदिर में पांच गर्भगृह हैं, जिनमें से चार में पूजा के लिए चार अलग-अलग प्रकार के शिव लिंग हैं, जिनमें क्रमशः सफेद, लाल, पीले और काले रंग हैं। शेष गर्भगृह में एक गणेश की मूर्ति है। 32-स्तंभित मण्डप में ये पाँच गर्भगृह हैं। परिसर में तीन तांत्रिक मंदिर हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव को समर्पित हैं। माना जाता है कि प्रवेश द्वार मंदिर के समीप बहने वाली नदी के पास स्थित था। यह एक अभ्यास था जो सिरपुर के मंदिरों में शुरू किया गया था, और उसके बाद देश के अन्य हिस्सों में फैल गया।

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लक्ष्मण मंदिर

शिरपुर अपने ऐतिहासिक महत्व के साथ विभिन्न धर्मों का प्रतिनिधित्व भी करता है, जिसमें हिन्दू और बौद्ध मुख्य हैं। आप यहां कई आकर्षक प्राचीन मंदिरों को देख सकते हैं, जिसमें लक्ष्मण मंदिर मुख्य माना जाता है। ईंटों की बड़ी संरचना पर खड़ा लाल पत्थरों का यह मंदिर यहां सबसे ज्यादा देखे जाने वाले स्थानों में शामिल है। मंदिर की वास्तुकला खासकर दीवारों पर उकेरी गई नक्काशी देखने लायक हैं। इस मंदिर को देखकर आपके प्राचीन भवन निर्माण शैली को समझ सकते हैं। यह एक मजबूत संरचना है जो अपने बड़े आधार के साथ आज भी खड़ी है। शिरपुर भ्रमण के दौरान आप यहां आ सकते हैं।

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डोंगरगढ़ में घूमने की जगहमें घूमने की जगह – Famous Tourist Places of Dongargarh In Hindi.

छत्तीसगढ़ राज्य के महत्पवूर्ण तीर्थ स्थलों में शुमार डोंगरगढ़, राजनांदगांव जिले से करीब 35 किमी की दूरी पर स्थित है। ना केवल एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बल्कि एक पर्यटन स्थल के रूप में भी यह जगह इतनी हलचलभरी और प्रसिद्ध है कि यहां लगभग सालभर ही श्रद्धालुओं का तांता सा लगा रहता है।  खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा यह पूरा इलाका कई मायनों में खुद को एक यादगार भ्रमण स्थली के रूप में साबित करता है। यहां कई छोटे-बड़े तालाब हैं और चारों ओर फैली हरियाली यहां की प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगाने का काम करती है। ना केवल प्राकृतिक नज़ारों, बल्कि यहां के माहौल में फैली शांति और सर्व धर्म सद्भाव की भावना भी आपको यहां बहुत कुछ खोजने पर मजबूर कर देगी। दरअसल प्रकृति, धर्म और आस्था का यह विविधताभरा संगम ही है जो डोंगरगढ़ को एक शानदार पर्यटन स्थल के रूप में प्रस्तुत करता है।  इस स्थान के शाब्दिक अर्थ की तह में जाएं तो पता चलता है कि डोंगरगढ़ का अर्थ है पहाड़, जिसमें गढ़ का मतलब किले को दर्शाता है। इसके अलावा यह स्थान मां बम्बलेश्वरी देवी के मंदिर के लिए बहुत प्रसिद्ध है जो कि 1600 मीटर की एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर के साथ कई किंवदंतियां जुड़ी हैं, जिसकी वजह से इस सुंदर तीर्थ स्थल का आध्यात्मिक महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। नवरात्र के दिनों में यहां भव्य स्तर पर मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें भाग लेने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु देश के अलग-अलग हिस्सों से हर साल यहां देवी मां का आर्शीवाद पाने के लिए आते हैं।   

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प्रज्ञागिरी

अगर आप छत्तीसगढ़ की यात्रा पर हैं तो इस स्थान पर जरूर जाएं। राज्य का यह पहाड़ी स्थल जाना जाता है भगवान बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा के लिए, जहां तक पहुंचना किसी रोमांच से कम नहीं है। पर याद रहे कि बुद्ध की प्रतिमा और पहाड़ों के सुंदर नजारे का आनंद लेने के लिए आपको 225 सीढ़ीयां चढ़नी होंगी जो किसी पहाड़ को चढ़ने जैसा ही है। बताया जाता है कि इस सुंदर स्थल का निर्माण सन 1998 के आस-पास करवाया गया था। 

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बंबलेश्वरी मंदिर

भारत में आपको ऐसे अनेकों मंदिर देखने को मिलेंगे जो किसी ऊंचे पहाड़ की चोटी पर बने हैं। करीब 1600 फीट की ऊंचाई पर स्थित बम्बलेश्वरी देवी का यह मंदिर भी एक ऊंची पहाड़ी पर बना है। इसके पास ही एक अन्य मंदिर भी है, जिसे छोटी बम्बलेश्वरी के नाम से जाना जाता है। दोनों मंदिरों के बीच की दूरी महज आधा किमी ही है। नवरात्र के दिनों में यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें भाग लेने के लिए दूर-दूर से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।  

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धमतरी में घूमने की जगह – Famous Tourist Places of Bilaspur In Hindi.

धमतरी जिले में स्थित कई पर्यटन स्थल ऐसे हैं जिनकी लोकप्रियता दूर-दूर तक है यहां स्थित बिलाई माई का मंदिर रुद्री और गंगरेल डैम के साथ-साथ सिहावा पर्वत भी काफी प्रसिद्ध है।

बिलाई माता धमतरी। Bilai mata dhamtari. Damtari ke danteshwari.

माताबिलाईकामंदिरनगर के दक्षिण में महा नदी के किनारे स्थित है। यह धमतरीजिला का मुख्य मंदिर है।बिलाई माता को मां विंध्यवासिनी के रूप में भी जाना जाता है। मां विंध्यवासिनी का मुख्य मंदिर उत्तर प्रदेश के विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित है। मां विंध्यवासिनी देवी दुर्गा का ही एक रूप है और यह एक प्रमुख कारण है कि बिलाई माता के मंदिर में नवरात्रों में अधिक भीड़ लगती है। मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना पूरी होती है और आपको बता दें कि यहां पर आज भी बकरों की बलि माता को दी जाती है। यह बली मनोकामना की पूरे हो जाने के पश्चात माता को चढ़ाई जाती है।

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रुद्री डैम धमतरी। Rudri dam dhamtari.

रुद्री डैम एक ऐतिहासिक डेम है जिसे भारत के सरकार ने नहीं बल्कि अंग्रेजों ने बनवाया था। यह डैम 19वीं सदी में बनवाया गया था। इसे इंग्लैंड के शासकों द्वारा बनवाया गया था। यह डैम महानदी पर बनी हुई है। यह डैम सबसे पुरानी सिंचाई परियोजना में से एक है। यह डैम अपने जमाने में यहां आसपास के सभी खेत खलियान तक नहरों के माध्यम से पानी पहुंचाती थी। आज भी इस डैम द्वारा राज्य के लगभग लगभग 4 जिलों में पानी पहुंचाया जाता है।

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गंगरेल बांध धमतरी। Gangrel bandh. Mini goa dhamtari.

गंगरेल बांध छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा बांध है और यह राज्य के कई जिलों को सिंचाई के लिए पानी भी प्रदान करता है। इस बांध को पंडित रविशंकर जलाशय के नाम से भी जाना जाता है। गंगरेल बांध धमतरी से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इस बांध को 5 जून 1972 को खोला गया था। इस बांध में कुल 14 गेट बने हुए हैं। इस बांध द्वारा राज्य के मुख्य शहरों रायपुर और भिलाई स्टील प्लांट के लिए भी जल पहुंचाया जाता है। गंगरेल बांध में मिनी गोवा भी बनाया गया है यहां पर जाकर आप सभी प्रकार की वाटर एक्टिविटी भी कर सकते हैं जिसमें आप बोटिंग का मजा भी उठा सकते हैं। गंगरेल बांध को बरसात के मौसम में अत्यधिक सैलानी देखने आते हैं। बरसात के मौसम में यहां का नजारा देखने लायक होता है। यहां से निकलने वाली धाराएं किसी के भी मन को विचलित कर सकती हैं।

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सिहावा पर्वत। Sihava cave dhamtari.

सिहावा पर्वत महानदी का उद्गम स्थल है। यहीं से महानदी निकलकर राज्य को पानी प्रदान करता है। यह नदी छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा भी कहलाती है। यहां पर दो मुख्य पार्वत मिलती हैं पहला महेंद्र गिरी पर्वत और दूसरा श्रीखंड पर्वत। कहा जाता है कि लिए पर्वतों पर आकर श्रृंगी ऋषि ने तप किया था और श्रृंगी ऋषि का तपोस्थली आज भी यहां पर मौजूद है। यहां पर ऊपर पहाड़ चड़ने पर आपको एक मंदिर मिलेगी जहा पर श्रृंगी ऋषि का तपो स्थल भी मौजूद है। यह एक देखने लायक जगह है। यहां पर एक हॉल के समान एक मंदिर है जहां बैठ कर श्रद्धालु विश्राम करते है। यह एक पर्वत है यहां पर जाकर आप शांति का अनुभव करेंगे। इस पर्वत पर जाने के लिए आपको सीढ़ियों के माध्यम से जाना पड़ेगा। यहां पर उड़नखटोला की सुविधा उपलब्ध नहीं हैं। सिहावा पर्वत धमतरी से मात्र 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप यहां धमतरी से आसानी से जा सकते है।

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दंतेवाड़ा में घूमने की जगह – Famous Tourist Places of Dantewada In Hindi.

दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ का मुख्य जिला है। दंतेवाड़ा में आपको  खूबसूरत पहाड़ियां, जंगल और नदियां देखने के लिए मिलते हैं।  दंतेवाड़ा जिला आदिवासी जनजातियों का घर है और यहां पर बहुत सारे जनजातियां रहती हैं। यहां पर प्रसिद्ध दंतेश्वरी मंदिर विद्यमान है। दंतेवाड़ा में घूमने के लिए बहुत सारी जगह है। 

दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा – Danteshwari Temple Dantewada

दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। दंतेश्वरी मंदिर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। इस मंदिर को लेकर धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई है। कहा जाता है, कि यहां पर मां पार्वती जी का दांत गिरा था। इसलिए इसे दंतेश्वरी मंदिर के नाम से जाना जाता है और यह 1 शक्तिपीठ है। यह जगह बहुत ही सुंदर है। यहां पर संखिनी और दकिनी दो नदियों का संगम हुआ है। इन्हीं नदियों के संगम स्थल पर मां दंतेश्वरी का मंदिर स्थित है। यहां पर आकर बहुत अच्छा लगता है। यह मंदिर बहुत ही सुंदर तरीके से बना हुआ है। मंदिर के गर्भ गृह में माता की भव्य प्रतिमा के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। मां दंतेश्वरी का मंदिर लकड़ी का बना हुआ है। यह मंदिर बहुत ही सुंदर है। मंदिर में महामंडप, मंडप, अर्धमंडप और गर्भ ग्रह देखने के लिए मिलता है। यहां मंदिर के अंदर बहुत सारी प्राचीन प्रतिमाएं देखने के लिए मिलती है। यहां पर शंकर जी, गणेश जी, विष्णु जी और भी बहुत सारे देवी देवताओं की काले पत्थर की प्रतिमा विराजमान है। गर्भ गृह में मां दंतेश्वरी की काले कलर की प्रतिमा विराजमान है और मा दंतेश्वरी वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित है। फूल मालाएं उन पर चढ़ाई जाती हैं और मां दंतेश्वरी के सर के ऊपर चांदी का एक छत्र चढ़ाया गया है, जिससे उनकी मूर्ति बहुत ही आकर्षक लगती है। मां दंतेश्वरी मंदिर में माता के गर्भ गृह में दर्शन करने के लिए जाते हैं, तो आपको यहां पर लूंगी पहननी पड़ती है, क्योंकि यहां पर सिले हुए वस्त्र पहनकर मां के गर्भ गृह में प्रवेश नहीं किया जाता है। मुख्य मंदिर के बाहर आपको एक गरुण स्तंभ देखने के लिए मिलेगा और इस स्तंभ के बारे में कहा जाता है कि यह स्तंभ किसी के भी बाहों में पूरा आ जाता है, तो माता उनकी इच्छाएं जरूर पूरी करती है। यहां पर शंकिनी और डंकिनी नदियों का बहुत सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलता है। आप यहां पर नवरात्रि के समय आएंगे, तो आपको यहां पर बस्तर के और भी बहुत सारे रीति रिवाज देखने के लिए मिलेंगे। यह मंदिर बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा जिले में स्थित है। यह जगदलपुर से करीब 90 किलोमीटर होगा। आप यहां पर बस से या अपने वाहन से आराम से पहुंच सकते हैं।

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इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान दंतेवाड़ा – Indravati National Park Dantewada

इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान दंतेवाडा के पास स्थित एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह राष्ट्रीय उद्यान छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के अंतर्गत आता है। यह राष्ट्रीय उद्यान बहुत सुंदर है। इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1978 में की गई थी। यह राष्ट्रीय उद्यान 2799.08 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पर आपको बहुत सारे जंगली जानवर देखने के लिए मिलते हैं। यहां पर आपको गौर, नीलगाय, काला हिरण, चौसिंगा, सांभर, चीतल, भालू, जंगली कुत्ता, लकड़बग्घा, उड़ने वाली गिलहरी, पैंगोलिन, बंदर, लंगूर, अजगर, सांप, मगरमच्छ, मॉनिटर लिजर्ड, कोबरा, रसल वाइपर और भी बहुत सारे जंगली जानवर देखने के लिए मिलते हैं। यहां पर पेड़ पौधे की भी बहुत सारी प्रजाति पाई जाती है। यहां पर टीक, साल, महुआ, तेंदू, बेर, जामुन पाए जाते हैं। इंद्रावती नेशनल पार्क में भारत से गायब हो चुका जंगली भैंसा देखने के लिए मिलता है। यहां पर इस भैंसा का संरक्षण किया जा रहा है। यहां पर जंगली भैंसा अधिकतर देखने के लिए मिल जाता है। इसके अलावा आपको राष्ट्रीय पशु बाघ भी देखने के लिए मिल जाता है। इंद्रावती नेशनल पार्क 1983 टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट में शामिल किया गया है। यह एक प्रोजेक्ट है। इंद्रावती नदी के किनारे होने के कारण इसे इंद्रावती नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता है। आप यहां पर सफारी का मजा ले सकते हैं। यहां पर आपको प्राकृतिक वातावरण के साथ जंगली जानवर भी देखने के लिए मिल जाते हैं। यह दंतेवाड़ा के पास में घूमने के लिए एक मुख्य जगह है। आप दंतेवाड़ा घूमने के लिए आते हैं, तो यहां पर भी आ सकते हैं। 

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ढोलकल गणेश – Dholkal Ganesh

ढोलकल गणेश दंतेवाड़ा का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यहां पर गणेश जी की प्रतिमा एक बहुत ऊंची चट्टान में घने जंगलों के बीच में स्थित है। यहां पर गणेश जी की प्रतिमा 300 फीट ऊंचे स्थान पर रखी हुई है। इस ऊंचाई तक पहुंचने के लिए ट्रैकिंग करनी पड़ती है। ट्रैकिंग का जो रास्ता है। वह घने जंगलों से होते हुए जाता है। यहां पर आप गणेश जी के दर्शन करने के लिए आते हैं, तो आपको गाइड लेकर आना पड़ता है, क्योंकि आप जंगल में भटक सकते हैं। ढोलकल गणेश जी की प्रतिमा के पास पहुंच कर आपको चारों तरफ का सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलता है। यहां गणेश जी की प्रतिमा पहाड़ी की चोटी में किनारे पर रखी गई है। गणेश चतुर्थी के समय यहां पर बहुत सारे भक्त ट्रैकिंग करते हैं और भगवान गणेश जी के दर्शन करने के लिए आते हैं। दंतेवाड़ा से 13 किलोमीटर दूर फरसपाल गांव है, जहां से आकर आप ट्रैकिंग शुरू कर सकते हैं। यहां पर आपको गाइड भी मिल जाता है। माना जाता है, कि गणेश जी की जो प्रतिमा यहां पर विराजमान है। वह 3 फुट की है और ग्रेनाइट पत्थर की बनी हुई है। यह प्रतिमा नवमी और दशमी शताब्दी में बनाई गई थी और यह नागवंशी शासकों द्वारा बनाई गई थी। इस जगह के बारे में कहा जाता है कि परशुराम जी और गणेश जी के युद्ध में परशुराम जी ने, जब गणेश जी पर अपने फरसा से वार किया था, तो यहां पर गणेश जी का दांत टूट गया था। इसलिए उन्हें एकदंती के नाम से जाना जाता है और यहां पर जो गांव है। उसका नाम फरसपाल गांव पड़ा, तो आप जब भी दंतेवाड़ा घूमने आते हैं, तो इस जगह पर आपको जरूर आना चाहिए। यहां पर बच्चों और बूढ़े व्यक्तियों को आने में थोड़ी सी परेशानी हो सकती है, क्योंकि यहां पर जो रास्ता है। वह बहुत ही खतरनाक है। आप प्रकृति प्रेमी है, तो आपके लिए यह जगह स्वर्ग से कम नहीं रहेगी। 

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झारालावा जलप्रपात दंतेवाड़ा – Jharalawa Falls Dantewada

झारालावा जलप्रपात दंतेवाड़ा का एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल है। यहां पर आपको प्राकृतिक सुंदरता देखने के लिए मिलती है। यह जलप्रपात जंगल के बीच में स्थित है। यहां पर पहुंचने के लिए ट्रैकिंग करनी पड़ती है। मगर यहां पर पहुंचकर, जो दृश्य देखने के लिए मिलता है। वह आंखों को सुकून देता है। यहां पर यह झरना दो या तीन स्तरों में गिरता है। आप यहां पर आकर इस झरने की खूबसूरती का आनंद उठा सकते हैं। इस झरने तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले झिरका गांव में आना पड़ता है। उसके बाद आपको ट्रैकिंग करनी पड़ती है। यह दंतेवाड़ा में घूमने लायक जगह है। 

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मालनगिर जलप्रपात दंतेवाड़ा – Malangir Falls Dantewada

मालनगिर जलप्रपात दंतेवाड़ा में स्थित एक सुंदर जलप्रपात है। यह प्राकृतिक पर्यटन स्थल है। यह जलप्रपात किरंदुल के पास स्थित है। आप यहां पर गाड़ी से पहुंच सकते हैं। यहां पर पहुंचने के लिए रोड उतनी अच्छी नहीं है। मगर यहां पर पहुंचकर आपको बहुत सुंदर जलप्रपात देखने के लिए मिलता है और यहां पर आप बरसात के समय आएंगे, तो यह जलप्रपात आपको देखने के लिए मिलेगा। गर्मी के समय यह जलप्रपात नहीं रहता है। यहां पर चारों तरफ हरियाली और जंगल है और यहां पर जंगली जानवर भी रहते हैं। इसलिए अगर आप यहां पर आते हैं, तो ग्रुप के साथ आएं। ताकि आप सुरक्षित रहें।

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किरंदुल दंतेवाड़ा – Kirandul Dantewada

किरंदुल दंतेवाडा में घूमने वाली जगह है। यहां पर आपको बहुत सारे जगह देखने के लिए मिल जाती है। यहां पर पहाड़ियों का सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलता है, क्योंकि किरंदुल पहाड़ियों के बीच में स्थित है। यहां पर आपको रामा बूटी मंदिर, सत्संग मंदिर, शिव मंदिर देखने के लिए मिल जाते हैं। यहां पर आपको अंबेडकर पार्क, चिड़िया पार्क जैसे सुंदर पार्क भी देखने के लिए मिल जाते हैं। किरंदुल का मुख्य आकर्षण है – आयरन माइंस। यहां पर आयरन की माइनिंग की जाती है। यहां पर बहुत बड़ा खुला क्षेत्र है, जहां पर लोहे की माइनिंग की जाती है। यहां पर जो पहाड़ी है। उसको काटकर लोहे की माइनिंग की जा रही है। किरंदुल में आपको सुंदर सूर्यास्त का दृश्य भी देखने के लिए मिलता है। यहां पर बरसात के समय बहुत अच्छा लगता है। 

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बैलाडीला पहाड़ी दंतेवाड़ा – Bailadila Hill Dantewada

बैलाडीला पहाड़ी दंतेवाड़ा का एक मुख्य प्राकृतिक पर्यटन स्थल है। यहां पर आपको प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए मिलते हैं। अगर आपने बैल देखा होगा, तो बैल में आपको गर्दन के ऊपर की तरफ उभरा हुआ भाग देखने के लिए मिलता है। उसी तरह बैलाडीला भी दिखाई देता है और इसलिए इसे बैलाडीला कहा जाता है। बैलाडीला किरंदुल के पास में स्थित है। बैलाडीला आयरन से समृद्ध है और यहां पर आयरन की माइनिंग की जाती है। बैलाडीला के आसपास के क्षेत्रों में आदिवासी जनजातियां रहती हैं। बैलाडीला में जंगली जानवर और पेड़ पौधों की बहुत सारी प्रजातियां पाई जाती है। यह जो आदिवासी लोग रहते हैं। यह इस जंगल पर ही निर्भर करते हैं और उनका रहन-सहन भी बहुत साधारण रहता है। यह इस पहाड़ी से अपनी जरूरत के सारे सामान हासिल कर लेते हैं। आपको यहां पर आकर एक अलग अनुभव मिलेगा। 

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शिव मंदिर दंतेवाड़ा – Shiv Mandir Dantewada

शिव मंदिर दंतेवाड़ा में स्थित एक प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर समलूर गांव के पास में बना हुआ है। यह मंदिर पत्थरों से बना हुआ है। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग विराजमान है। मंदिर के बाजू में तालाब बना हुआ है। यह मंदिर करीब 1000 वर्ष पुराना है। आप यहां पर घूमने के लिए आ सकते हैं। 

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शिवानंद आश्रम दंतेवाड़ा – Shivanand Ashram Dantewada

शिवानंद आश्रम दंतेवाड़ा में स्थित एक धार्मिक स्थल है। यहां पर आपको शिव भगवान जी का मंदिर देखने के लिए मिलेगा। यहां पर एक तालाब में शिव भगवान जी की मूर्ति विराजमान है, जो बहुत सुंदर लगती है। यहां पर चारों तरफ जंगल है। यहां पर हनुमान जी की भी एक बड़ी सी मूर्ति देखने के लिए मिलती है। यह जगह दंतेवाड़ा में गुमरगंडा गांव में स्थित है। आप यहां पर घूमने के लिए आ सकते हैं। आपको यहां पर अच्छा लगेगा। 

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मुचनार बारसूर दंतेवाड़ा – Muchnar Barsoor Dantewada

मुचनार दंतेवाड़ा में स्थित एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह एक सुंदर जगह है। यह इंद्रावती नदी के किनारे स्थित है। यहां पर आप कैंपिंग, बोनफायर, नाइट स्टे, एडवेंचर स्पोर्ट, पिकनिक, नेचर ट्रेल आदि गतिविधियों का आनंद उठा सकते हैं। यहां जगह मुचनार गांव के पास में पड़ता है। इसलिए इस जगह को मुचनार के नाम से जाना जाता है। यहां पर आप होमस्टे कर सकते हैं। लोकल खाने का आनंद उठा सकते हैं। यह जगह बारसुर के मुचनार गांव के पास इंद्रावती नदी के किनारे स्थित है।  यहां पर इंद्रावती नदी के किनारे रेत का किनारा है, जो बहुत ही अच्छा है और आपके यहां पर आकर नहाने और तैराकी का मजा ले सकते हैं। 

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सातधार जलप्रपात दंतेवाड़ा – Satadhar Falls Dantewada

सातधार जलप्रपात दंतेवाड़ा का एक सुंदर जलप्रपात है। यह जलप्रपात इंद्रावती नदी में बना हुआ है। यह जलप्रपात बारसूर से करीब 6 किलोमीटर दूर है। यहां पर आकर आपको बहुत अच्छा लगेगा। यहां पर इंद्रावती नदी छोटी-छोटी धाराओं में बहती है, जिससे यह बहुत ही सुंदर लगती है। चारों तरफ घना जंगल है। यहां पर आने का रास्ता भी जंगल से भरा है। आपको मुख्य सड़क से नदी के तरफ आना पड़ता है। आप यहां पर अपना अच्छा समय बिताने के लिए आ सकते हैं। यह दंतेवाड़ा में पिकनिक के लिए एक अच्छी जगह है। 

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बारसूर दंतेवाड़ा – Barsoor Dantewada

बारसूर दंतेवाड़ा का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहां पर आपको प्राचीन मंदिर देखने के लिए मिलते हैं। बारसूर दंतेवाड़ा से 33 किलोमीटर दूर है। यहां पर बहुत सारे प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। यहां पर स्थित प्राचीन मंदिरों में गणेश जी का मंदिर, मामा भांजा मंदिर, बत्तीस मंदिर, शंकर जी का मंदिर, काल भैरव का मंदिर प्रसिद्ध है। यहां पर बहुत सारे प्राचीन तालाब भी देखने के लिए मिलते हैं। यह मंदिर 10वीं और 11वीं शताब्दी में बनाए गए हैं। आप दंतेवाड़ा घूमने के लिए आते हैं,तो आप बारसूर भी आ सकते हैं। यहां पर आपको प्राचीन तालाब और मंदिर देखने के लिए मिल जाते हैं। यह बारसूर में घूमने लायक जगह हैं। 

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मैनपाट में घूमने की जगह – Famous Tourist Places of Bilaspur In Hindi.

मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है। मैनपाट छत्तीसगढ़ का एक हिल स्टेशन है। मैनपाट खूबसूरत वादियों से घिरा हुआ है। मैनपाट छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर जिले (सरगुजा जिला) में स्थित है। मैनपाट समुद्र सतह से 3781 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मैनपाट विंध्य पर्वत माला पर स्थित है। मैनपाट से बहुत सारी नदियों का उद्गम हुआ है। मैनपाट से रिहंद और मांड नदी निकलती है। इन दो नदियों के बारे में बहुत सारे लोगों को जानकारी है। यहां पर और भी नदियां निकलती हैं, जिनके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है। मैनपाट को छत्तीसगढ़ का तिब्बत भी कहा जाता है, क्योंकि यहां पर तिब्बत लोग रहते हैं। यहां पर तिब्बत लोगों को कल्चर देखने के लिए मिलता है। यहां पर बौद्ध विहार देखने के लिए मिलते हैं, जो बहुत ही सुंदर बनाए गए हैं। यहां पर बौद्ध संत लोग रहते हैं और मेडिटेशन करते हैं। 

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उल्टा पानी मैनपाट – Ulta pani Mainpat

उल्टा पानी को बिसरपानी भी कहा जाता है। यह मैनपाट में स्थित एक आश्चर्यजनक जगह है। उल्टा पानी को कुदरत का करिश्मा कहा जाता है, क्योंकि यहां पर देखने से ऐसा प्रतीत होता है, कि जैसे पानी ऊपर की तरफ, पहाड़ी की तरफ बह रहा हो। इस तरह का, हमें यहां पर देखने से लगता है। यह जगह सरगुजा जिले के मैनपाट में बिसरपानी गांव में स्थित है। उल्टा पानी में पानी का उद्गम  एक पेड़ के पास पत्थर के नीचे से हुआ है और यह पानी आगे की तरफ 185 मीटर चल कर नीचे नाली भी तरफ बह जाता है। देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि पानी नीचे से ऊपर की तरह बह रहा है। उल्टा पानी पर एक और अजूबा होता है। यहां पर गाड़ी को अगर न्यूट्रल में खड़ी कर दी जाए, तो गाड़ी अपने आप खुद आगे बढ़ती है और कुछ दूरी पर जाकर रुक जाती है। यहां पर चुंबकीय क्षेत्र है, जिससे गाड़ी अपने आप आगे बढ़ती है। इस जगह पर बहुत सारे लोग इस तरह का एक्सपेरिमेंट करते हुए देखने के लिए मिल जाते हैं। यह जगह अपने इन अजूबों के कारण प्रसिद्ध है और यहां पर हर साल पर्यटक घूमने के लिए आते हैं और इस जगह को देखते हैं। 

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एप्पल गार्डन मैनपाट – Apple Garden Mainpat

एप्पल को कश्मीर में उगते हुए देखा होगा। मगर आप मैनपाट आकर भी एप्पल को उगता हुआ देख सकते हैं। यहां पर एप्पल के पौधे देखने के लिए मिलते हैं। इसके अलावा बहुत सारे पौधे यहां पर लगाए गए हैं। यहां पर आलू की विभिन्न प्रकार लगाए गए हैं। नाशपाती, चेरी, स्ट्रॉबेरी, अमरूद, अनार यहां पर लगाए गए हैं और यहां पर विभिन्न प्रकार के फूलों वाले पौधे भी लगाए गए हैं। यहां पर आपको पेड़ पौधों से जुड़ी हुई और नर्सरी से जुड़ी हुई बहुत सारी जानकारी मिलती है। अगर आप पेड़ पौधों से संबंधित जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको यहां पर विजिट जरूर करना चाहिए। यह इंदिरा गांधी कृषि विद्यालय में लगाए गए हैं।

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मेहता पॉइंट मैनपाट – Mehta Point Mainpat

मेहता पॉइंट मैनपाट का एक सुंदर स्थल है। यहां पर सूर्यास्त का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है। यहां पर शाम के समय आकर सूरज को डूबते हुए देखना बहुत ही अच्छा लगता है। मैनपाट मे मेहता पॉइंट में व्यूप्वाइंट बनाया गया है, जहां से पूरी वादियों का दृश्य देखने के लिए मिलता है। यहां पर दूर-दूर तक फैला हुआ जंगल का सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलता है। आप यहां पर आ कर घूम सकते हैं। यहां पर ठहरने के लिए रेस्टोरेंट भी है। यहां पर आप आकर कैंपिंग भी कर सकते हैं।  

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फिश प्वाइंट मैनपाट – Fish Point Mainpat

फिश प्वाइंट मैनपाट की एक सुंदर जगह है। यहां पर आपको दो वाटरफॉल देखने के लिए मिलते हैं। दोनों वाटरफॉल का डायरेक्शन अलग अलग है। दोनों ही वॉटरफॉल बहुत ऊंचाई से नीचे गिरते हैं और बहुत सुंदर लगते हैं। यहां पर एक स्टॉप डैम भी बना हुआ है। यहां पर बरसात के समय बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि पानी की मात्रा ज्यादा रहती है। यहां बरसात और ठंड के समय घूमने के लिए आया जा सकता है। गर्मी के समय यहां पर पानी नहीं रहता है। यह जगह चारों तरफ जंगल से घिरी हुई है और यहां पर चट्टानों है। आप चट्टानों में आप घूम सकते हैं और यहां पर आकर अच्छा लगता है। 

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जलपरी वाटरफॉल मैनपाट – Jalpari Waterfall Mainpat

जलपरी वॉटरफॉल मैनपाट का एक सुंदर सा जलप्रपात है। यह जलप्रपात छोटा है और यह एक कुंड पर गिरता है। यह जलप्रपात घने जंगल के अंदर स्थित है। इस जलप्रपात में अगर आप जाते हैं, तो आप यहां पर किसी लोकल व्यक्ति के साथ जाए, क्योंकि जंगल में आप रास्ता भटक सकते हैं। यह जलप्रपात फिश पॉइंट से करीब 3 किलोमीटर दूर है। यह जलप्रपात बहुत खूबसूरत है। 

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टाइगर पॉइंट मैनपाट – Tiger Point Mainpat

टाइगर पॉइंट मैनपाट की एक सुंदर जगह है। इस जगह को टाइगर पॉइंट इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यहां पर लोगों के अनुसार बहुत बार टाइगर को देखा जा चुका है। यहां पर आपको एक सुंदर झरना देखने के लिए मिलता है। यह झरना 30 मीटर की ऊंचाई से नीचे गिरता है और यह झरना बहुत ही सुंदर लगता है। झरने के नीचे की तरफ जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है। सीढ़ियों से झरने के नीचे जाया जा सकता है और घुमा जा सकता है। टाइगर पॉइंट में बहुत सारी छोटी-छोटी दुकानें हैं, जहां पर खाने के लिए बहुत सारा सामान मिलता है। यहां पर आकर बहुत अच्छा समय बिताया जा सकता है। यहां पर झरने के नीचे नहाने का मजा भी लिया जा सकता है। यहां पर बहुत सारे बंदर देखने के लिए मिलते हैं। यह जगह बहुत सुंदर है। 

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जलजली मैनपाट – Jaljali Mainpat
  • जलजली मैनपाट की एक आश्चर्यजनक जगह है। इस जगह को दलदली और उछलती जमीन भी कहा जाता है, क्योंकि यहां पर आप जमीन में उछलते हैं, तो जमीन भी आपके साथ ऊपर उछलती है। यहां पर आप बहुत इंजॉय कर सकते हैं। यहां पर लोग आकर जमीन में उछलते रहते हैं और बच्चे लोगों को यहां पर बहुत मजा आता है। यहां पर हॉर्स राइडिंग का भी मजा लिया जा सकता है। मगर आप यहां पर घुड़सवारी का मजा ना लें, क्योंकि घोड़ों को बहुत ज्यादा दुख होता है। यहां पर आपखाने पीने का सामान ले सकते हैं और यह जगह अच्छी है। आप यहां पर आ कर इंजॉय कर सकते हैं।
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गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के दर्शनीय स्थल – Places to visit in Gaurela Pendra Marwahi / गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के आसपास घूमने वाली जगह

गौरेला पेंड्रा मरवाही जिला छत्तीसगढ़ का एक मुख्य जिला है। यह जिला मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित है। यह जिला प्राकृतिक रूप से बहुत खूबसूरत है। यहां पर अचानकमार वन्यजीव अभयारण्य का जंगल है। इस जिले से बहुत सारी नदियों का उद्गम होता है, जिनमें से अरपा नदी  प्रमुख है। गौरेला पेंड्रा मरवाही छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 200 किलोमीटर दूर है। गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में घूमने के लिए बहुत जगह है, चलिए जानते हैं, उनके बारे में –

लक्ष्मण धारा – Laxman Dhara

लक्ष्मण धारा गौरेला पेंड्रा मरवाही जिला का एक सुंदर पर्यटन स्थल है। यहां पर एक सुंदर झरना देखने के लिए मिलता है। यह अरपा नदी पर बना हुआ है। यहां पर अरपा नदी चट्टानों के बीच से बहती है, जो बहुत ही सुंदर लगती है। यह झरना अचानकमार वन्यजीव अभयारण्य के अंदर स्थित है। यहां पर आने के लिए कच्ची सड़क उपलब्ध है। यहां पर आकर बहुत अच्छा लगता है। यहां पर चट्टाने हैं, जिनके बीच से अरपा नदी बहती है। बरसात में इस जगह का दृश्य बहुत ही जबरदस्त रहता है।  नदी के दोनों तरफ पेड़ पौधे देखने के लिए मिलते हैं। लक्ष्मण धारा घने जंगल के अंदर स्थित है। यहां पर सरकार के द्वारा किसी भी प्रकार का व्यवस्था नहीं करवाई गई है। यह जगह लोगों के बीच में ज्यादा प्रसिद्ध नहीं है। इसलिए यहां पर बहुत कम लोग आते हैं। मगर यह जगह बहुत खूबसूरत है और यहां पर फैमिली और दोस्तों के साथ घूमने के लिए आया जा सकता है। लक्ष्मण धारा पर आकर बहुत अच्छा लगता है। अगर आप शांति में समय बिताना चाहते हैं, तो यहां पर आकर घूम सकते हैं। यह जगह गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में खोडरा के पास में स्थित है। यह खोडरा रेलवे स्टेशन से करीब 7 किलोमीटर दूर है। यहां पर आने के लिए कच्चा मार्ग उपलब्ध है। यहां पर कार और बाइक से पहुंचा जा सकता है। 

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मरही माता मंदिर भनवारटंक – Marhi Mata Temple Bhanwartank

मरही माता का मंदिर गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का एक धार्मिक स्थल है। यह मंदिर मरही माता को समर्पित है। यह मंदिर घने जंगल के अंदर स्थित है। मंदिर में रेलवे मार्ग और सड़क मार्ग के द्वारा पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर भनवारटंक में स्थित है। भनवारटंक रेलवे स्टेशन से मंदिर करीब आधा किलोमीटर दूर है। यह मंदिर बहुत सुंदर है। चारों तरफ घना जंगल है और मरही माता का मंदिर देखने के लिए मिलता है। यहां पर पिकनिक मनाने के लिए आया जा सकता है। यह मंदिर पेंड्रा बिलासपुर रेल मार्ग पर स्थित है। यहां से रेल से आना आसान रहता है, क्योंकि जंगल के अंदर तक सड़क माध्यम से जाना थोड़ा कठिन रहता है। रेल से आप आते हैं, रेलवे स्टेशन से उतरकर मंदिर आसानी से जा सकते हैं। मगर यहां पर अगर रोड से आप आते हैं, तो रोड का रास्ता बहुत ज्यादा खराब है। पूरा कच्चा रास्ता है और कहीं कहीं पर रोड में बड़े-बड़े पत्थर भी हैं, जिससे आने में परेशानी होती है। 

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अरपा नदी का उद्गम स्थल – Origin of Arpa River

अरपा नदी छत्तीसगढ़ की मुख्य नदी है। अरपा नदी का उद्गम गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में खोडरी गांव में हुआ है। यहां पर एक जलधारा बहती है, जिसे अरपा उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है। यहां पर मंदिर भी बना हुआ है, जहां पर शिव भगवान जी विराजमान है। यहां पर आकर घुमा जा सकता है। यह जगह  खोडरी रेलवे स्टेशन से करीब एक या डेढ़ किलोमीटर दूर होगी।

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मलानिया बांध गौरेला पेंड्रा मरवाही – Malania Dam Gaurela Pendra Marwahi

मलानिया बांध गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह बांध घने जंगलों के अंदर स्थित है। यह बांध बहुत ही सुंदर है। यह बहुत बड़ी एरिया में फैला हुआ है। यह बांध प्राकृतिक रूप से बना हुआ है। यहां पर सूर्यास्त का बहुत ही सुंदर दृश्य देखा जा सकता है। यहां पर घूमने के लिए जाया जा सकता है और अच्छा समय बिताया जा सकता है। कहा जाता है, कि यहां अरपा नदी का उद्गम स्थल से हुआ है। मलानिया बांध पेंड्रा विकासखंड के अंतर्गत आता है।

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शिवघाट गौरेला पेंड्रा मरवाही – Shivghat Gaurela Pendra Marwahi

शिवघाट गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का एक मुख्य पर्यटन स्थल है। यह स्थल सोन नदी पर बना हुआ है। यहां पर सोन नदी पर बड़ी-बड़ी चट्टानें हैं, जिनके बीच से सोन नदी बहती है। यहां पर बहुत ही अच्छा लगता है और यहां पर शिव मंदिर है, जहां पर शिव भगवान जी का शिवलिंग विराजमान है। यहां पर महाशिवरात्रि में मेले का आयोजन होता है, जहां पर दूर-दूर से लोग मेले में आते हैं। शिवघाट गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में मनौरा गांव में स्थित है। यह मरवाही विकासखंड के अंतर्गत आता है। यह जगह बहुत सुंदर है और यहां पर परिवार वालों के साथ पिकनिक मनाने के लिए आया जा सकता है। 

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लखन घाट गौरेला पेंड्रा मरवाही – Lakhan Ghat Gaurela Pendra Marwahi

लखन घाट गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का एक सुंदर स्थल है। यह स्थल भी सोन नदी के किनारे बना हुआ है। यहां पर एक सुंदर घाट देखने के लिए मिलता है। यहां पर शिव भगवान जी का मंदिर भी बना हुआ है, जो बहुत सुंदर है। यह हनुमान जी की बहुत बड़ी प्रतिमा के दर्शन यहां पर करने के लिए मिलते हैं। लखन घाट में सोन नदी का बहुत ही सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलता है। लखन घाट में स्नान का मजा लिया जा सकता है। लखन घाट में मकर संक्रांति के समय मेला लगता है, जिसमें बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं। 

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राजमेरगढ़ – Rajmergarh

राजमेरगढ़ छत्तीसगढ़ का सबसे ऊंचा पॉइंट है। यहां छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है। यह जगह छत्तीसगढ़ टूरिज्म के द्वारा विकसित की गई है। यहां पर एक व्यूप्वाइंट बना हुआ है, जहां से चारों तरफ की पहाड़ियों का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है। यहां पर दूर-दूर तक फैला हुआ सुंदर जंगल देखने के लिए मिलता है। यह जगह बहुत सुंदर है। यह जगह अमरकंटक में अमरेश्वर मंदिर के पास में स्थित है। 

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करी आम आश्रम गौरेला पेंड्रा मरवाही – Kari aam ashram gaurela pendra marwahi

करी ओम आश्रम गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का एक मुख्य धार्मिक स्थल है। यह जगह बिलासपुर मरवाही बायपास सड़क में स्थित है। यह जगह घने जंगल में स्थित है। यह जगह मुख्य रूप से काली माता को समर्पित है। यहां पर भगवान शिव का मंदिर और हनुमान जी का मंदिर देखने के लिए मिलता है। यहां पर एक सुंदर तालाब भी बना हुआ है। यह जगह बहुत ही सुंदर है और चारों तरफ से जंगलों से घिरी हुई है। मंदिर का प्रवेश द्वार भी बहुत आकर्षक है। यह मंदिर भी रंग बिरंगा बना हुआ है। मंदिर में पंचमुखी हनुमान की प्रतिमा के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यह मंदिर काली ग्राम में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण गुप्त वंश में छठवीं शताब्दी में सिरपुर की महारानी के द्वारा काली मंदिर का निर्माण एवं मूर्ति स्थापना की गई थी। वर्तमान समय में यह जगह करी आम के नाम से प्रसिद्ध है। आप जब भी बिलासपुर में इस सड़क से आते हैं, तो आप यहां पर घूमने के लिए आ सकते हैं। यह मंदिर मुख्य सड़क में ही स्थित है। 

सोन कुंड (सोन नदी का उद्गम स्थल) – Son Kund (origin of Son river)

सोन कुंड गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले का एक धार्मिक स्थल है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सोन नदी अमरकंटक से सूख गई है। इसलिए पुनः सोन नदी का उद्गम इस स्थान पर हुआ है। इस जगह पर एक कुंड देखने के लिए मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है, कि यहां पर सोन नदी का उद्गम हुआ है। यहां पर मंदिर भी बना हुआ है। यहां पर सोनभद्र मंदिर देखने के लिए मिलता है और नर्मदा जी का मंदिर देखने के लिए मिलता है। यहां पर शिवलिंग के दर्शन करने के लिए भी मिलते हैं। सोन कुंड गौरेला विकासखंड के आमडांड गांव में स्थित है। यहां पर आकर आप सोन नदी का उद्गम स्थल देख सकते हैं। सोन कुंड में मकर संक्रांति के समय बहुत विशाल मेला लगता है, जिसमें दूर दूर से लोग मेले में शामिल होने के लिए आते हैं। यहां पर अलग-अलग तरह की दुकानें लगती हैं। यह जगह मेले के समय बहुत ही भीड़ भाड़ वाली रहती है। आप यहां पर मेले के टाइम या किसी भी टाइम में घूमने के लिए आ सकते हैं।

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नेचर कैंप गंगनई जलाशय जामवंत माड़ा – Nature Camp Gangnai Reservoir Jamwant Mada

गंगनई जलाशय एक सुंदर जगह है। यहां पर नेचर कैंप बना हुआ है। यहां पर एक पार्क बना हुआ है। पार्क चारों तरफ से जंगलों से घिरा हुआ है। यहां पर जलाशय पहाड़ियों से घिरा हुआ है और यहां पर आकर बहुत अच्छा लगता है। यहां पर सुकून वाली शांति है। यहां पर आप घूमने के लिए आ सकते हैं। यह मरवाही विकासखंड के अंतर्गत आता है। आप यहां पर आकर घूम सकते हैं। यहां पर आने के लिए पक्की सड़क बनी हुई है।

सुकमा जिले के दर्शनीय स्थल – Places to visit in sukma (Chhattisgarh) / सुकमा जिले के आसपास घूमने वाली प्रमुख जगह 

सुकमा जिला छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख जिला है। सुकमा जिला आदिवासी बहुल क्षेत्र है। यहां पर आदिवासी लोगों की बहुत बड़ी जनसंख्या निवास करती है। सुकमा जिला जंगलों से घिरा हुआ है। सुकमा जिला में बहने वाली मुख्य नदी शबरी नदी है। यह जिला छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 400 किलोमीटर दूर है। सुकमा जिला छत्तीसगढ़ की राज्य की सीमा पर स्थित है। यह छत्तीसगढ़ और उड़ीसा बॉर्डर पर स्थित है। सुकमा जिले की सीमा और उड़ीसा जिले की सीमा में शबरी नदी बहती है और शबरी नदी इन दोनों राज्यों की सीमा बनाती है। सुकमा जिला में सड़क माध्यम के द्वारा पहुंचा जा सकता है। सुकमा जिला बहुत सुंदर है। यह जिला नक्सली प्रभावित क्षेत्र है। इसलिए पर्यटन के हिसाब से यह जिला लोगों में प्रसिद्ध नहीं है। मगर इस जिले में भी बहुत सारी जगह है, जहां पर घूमने जाया जा सकता है। चलिए जानते हैं सुकमा जिले में घूमने वाली जगह के बारे में –

तुंगल जैव विविधता पार्क और तुंगल बांध सुकमा – Tungal Biodiversity Park and Tungal Dam Sukma

तुंगल जैव विविधता पार्क और तुंगल बांध सुकमा जिले का एक मुख्य आकर्षण स्थल है। यह सुकमा की सबसे अच्छी जगह है। इस जगह को इको पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया गया है। यह जगह पर्यटकों को आकर्षित करती है। यहां पर आपको जंगली जानवर और जंगल का खूबसूरत नजारा देखने के लिए मिलता है। यहां पर हरियाली देखने के लिए मिलती है। यहां पर आकर अच्छा समय बिताया जा सकता है। यह जगह सुकमा जिले में पिकनिक मनाने के लिए एक अच्छी जगह है। यहां पर कार और बाइक से पहुंचा जा सकता है। तुंगल जैव विविधता पार्क के अंदर तुंगल बांध बनाया हुआ है। तुंगल बांध को सुकमा बांध के नाम से भी जाना जाता है। यह बांध बहुत ही सुंदर है और बहुत बड़े एरिया में फैला हुआ है। इस बांध के पास में ही बच्चों के खेलने के लिए चिल्ड्रन पार्क बना हुआ है। जहां पर बच्चे के लिए बहुत सारे झूले लगाए गए हैं। जहां पर बच्चे लोग काफी इंजॉय कर सकते हैं। इस बांध में बोटिंग की व्यवस्था भी उपलब्ध है। यहां पर पेडलबोट एवं अन्य बोट का मजा लिया जा सकता है। यहां पर आकर अच्छा लगता है। बांध का दृश्य बहुत ही आकर्षक रहता है। बरसात में इस जगह की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं। चारों तरफ हरियाली रहती है और बांध में पानी ओवरफ्लो होता है, जिसका दृश्य भी शानदार रहता है। यह सुकमा जिले में घूमने लायक जगह है। 

दुधमा जलप्रपात सुकमा – Dudhma Falls Sukma

दुधमा जलप्रपात सुकमा जिले का एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल है। यह जलप्रपात बहुत सुंदर है। यह जलप्रपात चट्टानों के बीच से बहता है। यहां पर आकर नहाने का मजा लिया जा सकता है। यह जलप्रपात जंगल के अंदर स्थित है। यह जलप्रपात मुख्य सुकमा शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर है। यहां पर आकर पिकनिक मनाया जा सकता है। जलप्रपात के पास में शिव भगवान जी का छोटा सा मंदिर भी बना हुआ है। दुधमा जलप्रपात को धुरमा जलप्रपात भी कहा जाता है। यह जलप्रपात चट्टानों के बीच से बहता है और बहुत ही शानदार लगता है। सुकमा शहर में घूमने वाली यह एक बहुत अच्छी जगह है। यहां पर दोस्तों और परिवार वालों के साथ पिकनिक मनाने के लिए आया जा सकता है। बरसात में इस जलप्रपात का दृश्य बहुत शानदार रहता है, क्योंकि बरसात में पानी की बहुत अधिक मात्रा देखने के लिए मिलती है। यहां पर आकर आप अच्छा समय बिता सकते हैं। यह जलप्रपात चिपुर्पल नाम के गांव के पास में स्थित है। इस जलप्रपात में पहुंचने के लिए सड़क मार्ग उपलब्ध है। यहां पर आपको आकर बहुत अच्छा लगेगा।  

चिटमिट्टीन माता मंदिर रामाराम सुकमा – Chitmittin Mata Temple Ramaram Sukma

चिटमिट्टीन माता मंदिर सुकमा जिले का प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर चिटमिट्टीन माता को समर्पित है। यहां पर बहुत सुंदर मंदिर देखने के लिए मिलता है, जिसमें चिटमिट्टीन माता की प्रतिमा विराजमान है। यह मंदिर बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यहां पर श्री राम जी ने अपने वनवास काल के दौरान यात्रा किया था। यहां पर राम जी के द्वारा जितनी भी जगह पर उन्होंने यात्रा किया था। उन सभी जगहों के बारे में मानचित्र में दिखाया गया है। यहां पर राम भगवान जी की बहुत ही सुंदर मूर्ति के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यहां पर हनुमान जी के भी दर्शन करने के लिए मिलते हैं। हनुमान जी की बहुत बड़ी प्रतिमा को यहां पर एक बड़ी सी चट्टान में बनाया गया है, जो बहुत ही सुंदर लगती है। यहां पर चारों तरफ प्राकृतिक वातावरण देखने के लिए मिलता है। यहां पर थोड़ी दूरी पर एक व्यूप्वाइंट बना हुआ है, जहां से चारों तरफ का सुंदर दृश्य देखने के लिए मिलता है। यह जगह प्राकृतिक और धार्मिक दोनों ही है। यहां पर फरवरी महीने पर रामाराम का मेला लगता है, जो बहुत ही शानदार रहता है। इस मेले में सुकमा जिले एवं आसपास के जिले के लोग घूमने के लिए आते हैं। यह मेला 4 या 5 दिनों तक लगता है और यहां पर बहुत सारी दुकानें लगती हैं, जहां पर तरह-तरह का सामान मिलता है। यहां पर आकर बहुत अच्छा लगता है।

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इंदुल झरना सुकमा – indul waterfall sukma

इंदुल झरना सुकमा जिले के पास में स्थित एक सुंदर जलप्रपात है। यह जलप्रपात घने जंगल के अंदर स्थित है। इस जलप्रपात को फूलपड़ जलप्रपात भी कहते हैं। यह जलप्रपात उची उची चट्टानों से नीचे गिरता है और बहुत ही आकर्षक लगता है। यह जलप्रपात दंतेवाड़ा जिले के अंतर्गत आता है। यह जलप्रपात फुलपड़ गांव से करीब 7 या 8 किलोमीटर दूर है। इस जलप्रपात तक पहुंचने का रास्ता कच्चा है। मगर इस जलप्रपात में आ कर बहुत अच्छा लगता है। यहां पर गांव वालों की मदद से पहुंचा जा सकता है और घुमा जा सकता है। यहां पर बहुत अच्छा लगता है। यह जलप्रपात बहुत ऊंचाई से नीचे गिरता है। अगर आप सुकमा जिले से दूर पिकनिक मनाने का प्लान बना रहे हैं, तो आपको यहां पर आना चाहिए। यह जगह बहुत सुंदर है और यहां पर आप 1 दिन का प्लान बनाकर घूमने के लिए आ सकते हैं।

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कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान – Kanger Valley National Park

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान सुकमा के पास घूमने के लिए एक सुंदर जगह है। यह एक राष्ट्रीय उद्यान है। यहां पर जंगल और जंगली जानवर देखने के लिए मिल जाते हैं। यह जगह सुकमा से करीब 50 किलोमीटर दूर है। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में बहुत सारी जगह है, जहां पर घुमा जा सकता है। यहां पर बहुत सारे झरने हैं, जो बहुत सुंदर है। यहां पर बहुत सारी गुफाएं हैं, जो देखी जा सकती है। यहां पर कैलाश गुफा, दंडक गुफा, कोटमसार गुफा देखने के लिए मिलती है। इसके अलावा यहां कांगेर धारा जलप्रपात देखने के लिए मिलता है, जो बहुत ही सुंदर है। यहां पर आकर बहुत अच्छा समय बिताया जा सकता है। यहां पर एक दिन पिकनिक का प्लान बनाकर सुकमा से घूमने के लिए आया जा सकता है। 

तेलावरती पिकनिक स्पॉट – Telavarti Picnic Spot

तेलावरती पिकनिक स्पॉट शबरी नदी पर बना हुआ एक सुंदर जगह है। तेलावरती पिकनिक स्पॉट घने जंगलों के बीच में बना हुआ है। यहां पर चट्टानों के बीच में पानी बहता है, जो बहुत ही सुंदर लगता है। यहां पर आकर पिकनिक मनाई जा सकती है। यह जगह प्राकृतिक है और यहां पर घूमने आया जा सकता है। 

तीरथगढ़ जलप्रपात – Tirathgarh Falls

तीरथगढ़ जलप्रपात सुकमा जिले के पास में स्थित एक सुंदर जलप्रपात है। यह जलप्रपात जगदलपुर जिले के अंदर अंतर्गत आता है। यह जलप्रपात बहुत सुंदर है। इस जलप्रपात में कई स्तरों से पानी नीचे गिरता है, जो देखने में बहुत ही आकर्षक लगता है। यह बहुत बड़ा जलप्रपात है। यहां पर बरसात के समय आकर, इस जलप्रपात की खूबसूरती को देखा जा सकता है। यह सुकमा जिले से करीब 80 किलोमीटर दूर है और यहां पर घूमने के लिए आया जा सकता है। 

सतीगुड़ा बांध – Satiguda Dam

सतीगुड़ा बांध सुकमा जिले के पास में स्थित एक सुंदर जगह है। यह जगह प्राकृतिक है। यहां पर एक बहुत बड़ा जलाशय देखने के लिए मिलता है। सतीगुड़ा बांध मलकानगिरी में स्थित है। यहां पर इको टूरिज्म साइट बनी हुई है, जो बहुत ही सुंदर है। यहां पर पार्क बना हुआ है, जहां पर बहुत सारे स्टैचू देखने के लिए मिलते हैं। यह जगह चारों तरफ से जंगल से घिरी हुई है। यहां पर खूबसूरत बांध देखने के लिए मिलता है, जिसमें बोट राइट का मजा लिया जा सकता है। इस जगह पर सुकमा जिले से आया जा सकता है। मलकानगिरी सुकमा जिले से करीब 30 किलोमीटर दूर है। यहां पर आकर बहुत अच्छा समय बिताया जा सकता है।

शबरी और सिलेरू नदी का संगम सुकमा – Confluence of Shabari and Sileru Rivers, Sukma

शबरी और सिलेरू नदी का संगम स्थल बहुत सुंदर है। यहां पर आपको 3 राज्यों की बॉर्डर भी देखने के लिए मिलती है। यहां पर छत्तीसगढ़, उड़ीसा और तेलंगाना की बॉर्डर मिलती हैं। यहां पर इन दोनों नदियों का संगम स्थल बहुत सुंदर है और यह जगह सुकमा में कोंटा में स्थित है। यहां पर आकर आप घूम सकते हैं। यहां पर बोटिग का भी मजा लिया जा सकता है।

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छत्तीसगढ़ का मौसम – Weather of Chattisgarh in Hindi

छत्तीसगढ़ में वर्ष के अधिकांश समय मध्यम जलवायु है और यात्रा करने का सबसे अच्छा समय गतिविधियों के प्रकार पर निर्भर करता है। उच्च तापमान के बावजूद, गर्मियों में वन्यजीव और प्रकृति पर्यटन के लिए छत्तीसगढ़ की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय है। राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य देखने के लिए इस समय पर्यटकों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। हालांकि, शहरों और पहाड़ी क्षेत्रों के दौरे के लिए, सर्दी अधिक उपयुक्त है। सर्दी के दिनों में दर्शनीय स्थलों की यात्रा अच्छे से की जा सकती है। पहाड़, झरने और नदियाँ सर्दियों के दौरान अपने सबसे अच्छे और हरे रंग में होते हैं, जिससे इन प्राकृतिक सुंदरियों को निहारना आसान हो जाता है।

छत्तीसगढ़ कैसे पहुंचें – How To Reach Chhattisgarh in Hindi

भारत के प्रमुख राज्यों में से एक होने के नाते छत्तीसगढ़ परिवहन के सभी साधनों से संपन्न है यहाँ पर्यटक फ्लाइट, ट्रेन या सड़क मार्ग किसी से भी यात्रा करके आसानी से आ सकते है।

फ्लाइट से छत्तीसगढ़ कैसे पहुंचें – How To Reach Chhattisgarh By Flight in Hindi

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर, राज्य का एकमात्र स्थान है जो नियमित उड़ानों द्वारा नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और नागपुर (महाराष्ट्र) से जुड़ा हुआ है।

ट्रेन से छत्तीसगढ़ कैसे पहुंचें – How To Reach Chhattisgarh By Train in Hindi

निश्चित रूप से भारत में कहीं से भी छत्तीसगढ़ जाने का सबसे अच्छा तरीका भारतीय रेलवे है। रायपुर और बिलासपुर दो मुख्य जंक्शन हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य को भारत के अन्य हिस्सों से जोड़ता है। बिलासपुर-निजामुद्दीन गोंडवाना एक्सप्रेस सप्ताह में तीन बार चलती है और नई दिल्ली से बिलासपुर और रायपुर तक जाती है।

सड़क मार्ग से छत्तीसगढ़ कैसे पहुंचें – How To Reach Chattisgarh By Road in Hindi

भारतीय उपमहाद्वीप के मध्य में स्थित, छत्तीसगढ़ अपने पड़ोसी राज्यों के साथ-साथ क्षेत्र के महत्वपूर्ण शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। अंतरराज्यीय और राष्ट्रीय राजमार्ग रायपुर को भोपाल, नागपुर, झांसी, जबलपुर, कोलकाता और भुवनेश्वर जैसे शहरों से जोड़ते हैं। अंतरराज्यीय राज्य रोडवेज बसें विभिन्न शहरों के बीच चलती हैं जबकि चार्टर्ड बस ऑपरेटर प्रमुख मार्गों पर सेवाएं चलाते हैं। चौपर चालित कैब और एमयूवी को ट्रैवल एजेंटों से किराए पर लिया जा सकता है।

इस आर्टिकल में आपने छत्तीसगढ़ राज्य (Full information of Chhattisgarh in Hindi) के बारे में जाना है, आपको हमारा ये आर्टिकल केसा लगा हमे कमेंट्स में जरूर बतायें।

छत्तीसगढ़ का मेप – Map of Chhattisgarh

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Complete information of Chhattisgarh – छत्तीसगढ़ राज्य की पूरी जानकारी

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Madan Sing
Madan Singh

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