संतति में पैतृक लक्षणों के संचरण को आनुवंशिकता कहते हैं। यह संचरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जनकों से युग्मको (gametes ) के द्वारा होता है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचारित होनेवाले लक्षण पैतृक लक्षण या आनुवंशिक लक्षण कहलाते हैं। ग्रेगर जॉन मेंडल एक जर्मन भाषी ऑस्ट्रियाई औगस्टेनियन पादरी एवं वैज्ञानिक थे। उन्हें आनुवांशिकी का जनक कहा जाता है। उन्होंने मटर के दानों पर प्रयोग कर आनुवांशिकी के नियम निर्धारित किए थे।

मेंडल ने मटर के पौधों(Pea plant- Pisum sativum) पर 7 सालों तक अपने संकरण प्रयोग (hybridisation experiments) किए और अनुवांशिकी के तीन नियम दिये जिन्हें अनुवांशिकी के नियम से जाना जाता है। ये नियम निम्न प्रकार हैं-
- आनुवंशिकता के नियम (Law of Heredity) : इस नियम के अनुसार जब दो विपरीत एलील किसी जीवधारी में एक साथ आते हैं, तब उनमें से केवल एक बाहरी रुप से दिखाई पड़ता है और दूसरा दबा हुआ रहता है। दिखाई देने वाले लक्षण को प्रभावी (dominant) एवं नहीं दिखाई देने वाले लक्षण को अप्रभावी (recessive) करते हैं। यह आनुवंशिकता का दूसरा नियम है।
- प्रभाविता का नियम(Law of dominance) : अनुसार जब विपरीत लक्षण के जोड़े को क्रॉस कराया जाता है तो युग्मक बनते समय एक जोड़ी के एलील एक – दूसरे से अलग हो जाते हैं। फलस्वरूप प्रत्येक युग्मक में दो में से केवल एक एलील रहता है, यह युग्मक अपने में शुद्ध होता है। युग्मकों के संगलन से प्रत्येक लक्षण के दोनों एलील पुनः जोड़ी बना लेते हैं। कोई युग्मक किसी एक लक्षण के लिए बिल्कुल शुद्ध होता है, अतः इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं।
- पृथक्करण का नियम(Law of segreस्वतंत्र अप्व्युहन पृथक्करण का नियम(Law of independent assortment): एक लक्षण की वंशानुगति दूसरे लक्षण की वंशानुगति से प्रभावित नहीं होती है एक पीढी से दूसरी पीढी में लक्षणों की वंशानुगति स्वतंत्र रूप से होती है। इसे स्वतंत्र अपव्यहून का नियम कहते है।
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आइये मेंडल के नियमों को विस्तार से समझते है –
मेंडल का एकल संकरण प्रयोग- जब पौधों में एक जोड़ी विपर्यासी लक्षण को ध्यान में रखकर उनके मध्य क्रॉस करवाया जाता है तो उसे एकल संकरण प्रयोग कहते है । प्रथम द द्वितीय नियम एकल संकरण क्रॉस पर आधारित है ।
उदाहरण: शुद्ध लंबा व बौने पौधे के मध्य संकरण

इस प्रकार प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों के मध्य संकरण करवाने पर द्वितीय पीढ़ी प्राप्त होती है ।

मेंडल ने जब मटर के शुद्ध लंबे (TT) व शुद्ध बौने (tt) पौधों के मध्य संकरण कराया तो पाया कि प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे लंबे प्राप्त हुए और जब मेंडल ने प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों में स्वपरागण होने दिया तो प्राप्त पाया कि द्वितीय पीढ़ी में 75% पौधे लंबे व 25% पौधे बौने प्राप्त हुए । इससे यह पता चलता हैं कि लक्षण प्रभावी व अप्रभावी होते है । प्रभावी कारक “T “अप्रभावी कारक “t” को प्रकट नहीं होने देता ।
आनुवंशिकता के नियम (Law of Heredity)
मेंडल के वंशागति नियम को आनुवंशिकता का नियम भी कहते हैं। एकसंकर क्रॉस के आधार पर आनुवंशिकता के निम्नलिखित तीन नियम प्रतिपादित होते हैं।
1. प्रभाविता का नियम (Law of dominance)
इस नियम के अनुसार जब दो विपरीत एलील किसी जीवधारी में एक साथ आते हैं, तब उनमें से केवल एक बाहरी रुप से दिखाई पड़ता है और दूसरा दबा हुआ रहता है। दिखाई देने वाले लक्षण को प्रभावी (dominant) एवं नहीं दिखाई देने वाले लक्षण को अप्रभावी (recessive) करते हैं। यह आनुवंशिकता का दूसरा नियम है।
लंबाई के लिए मटर के पौधों में दो एलील, लंबा (T) एवं बौना (t), होते हैं। मेंडल के प्रयोग में जब Pure लंबे TT पौधे का Pure बौने (tt) पौधे से संकरण कराया गया तो प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे लंबे थे, यह पौधा विषमयुग्मजी था और इसमें दोनों विपरीत एलील (T एवं t) मौजुद थे।इस प्रकार प्रथम पीढ़ी में केवल एक एलील, जिसे प्रभावी कहते हैं दिखाई देता है जबकि दूसरी एलील जो अप्रभावी होता है, बाहरी रुप से दिखाई नहीं पड़ता, जैसे बौनापन।
2. पृथक्करण का नियम (Law of Segregation)
मेंडल ने F₁ पीढी के पौधों में स्वपरागण करवाकर F₂ पीढी के पौधों का जब अध्ययन किया तो पाया कि 4 संभावित पौधों में से 3 पौधों में प्रभावी एवं 1 पौधे में अप्रभावी लक्षण दिखाई दिए। इससे पता चलता है कि F₁ पीढ़ी में पाए जानेवाले प्रभावी और अप्रभावी दोनों लक्षण अलग होकर F₂ पीढी में दिखाई देते हैं।
इस प्रकार पृथकरण के नियम के अनुसार जब विपरीत लक्षण के जोड़े को क्रॉस कराया जाता है तो युग्मक बनते समय एक जोड़ी के एलील एक – दूसरे से अलग हो जाते हैं। फलस्वरूप प्रत्येक युग्मक में दो में से केवल एक एलील रहता है, यह युग्मक अपने में शुद्ध होता है। युग्मकों के संगलन से प्रत्येक लक्षण के दोनों एलील पुनः जोड़ी बना लेते हैं। कोई युग्मक किसी एक लक्षण के लिए बिल्कुल शुद्ध होता है, अतः इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं।
3. स्वतंत्र संकलन या अपव्यूहन का नियम (Law of independent assortment)
द्विसंकर एवं बहुसंकर क्रॉसों में जहाँ दो या दो से अधिक युग्मविकल्पी लक्षणों (alleles) के जोड़ों की वंशागति का अध्ययन किया जाता है वहाँ युग्मविकल्पी लक्षणों के जोड़ों को स्वतंत्र अपव्यूहन होता है या एक युग्मविकल्प लक्षण के जोड़ो का अपव्यूहन दूसरे से स्वतंत्र होता है।
मेंडल ने दो जोड़ी विपर्यासी लक्षणों वाले भिन्न पौधों के मध्य संकरण कराया , इसे ही द्विसंकरण प्रयोग कहते है ।
उदा. गोल व पीले बीज(RRYY) और झुर्रीदार व हरे(rryy) बीज वाले पौधे के मध्य संकरण


मेंडल ने जब गोल व पीले बीज (RRYY) और झुर्रीदार व हरे बीज (rryy) वाले पौधों के मध्य संकरण कराया तो प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे गोल व पीले बीज (RrYy) वाले प्राप्त हुए । जब प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों के मध्य स्वपरागण होने दिया तो प्राप्त द्वितीय पीढ़ी में चार प्रकार के संयोजन प्राप्त हुए जिसमें फीनोटाइपिक अनुपात निम्न है –

अतः इससे निष्कर्ष निकला कि द्वितीय पीढ़ी में लक्षणों का स्वतंत्र रूप से पृथक्करण होने के कारण प्रत्येक जोड़ी के विपर्यासी लक्षण दूसरी जोड़ी के विपर्यासी लक्षणों से स्वतंत्र व्यवहार करते है । इस कारण इसे स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम भी कहते है । इससे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते है ।