छठ का पर्व एक पर्व ही नहीं बल्कि बिहारियों की गौरव की एक पहचान है! हजारो किलोमीटर से आने वाले, टिकट कन्फर्म न होने पर ट्रैन के शौचालय में खड़े होकर सफर करने वाले हमारे बिहारी भाइयों की अपने छठ पर्व के प्रति इतना समर्पण और लगाव शायद ही कहीं देखने को मिलता हो।
अगर आपको सच्चे दोस्त , हमसफ़र या पार्टनर की जरूरत है तो आप एक बिहारी से दोस्ती कर लीजिये, वह आपको कभी भी हताश या उदाश नहीं होने देगा, संघर्ष की ए , बी , सी , डी सीखना है, ईमानदारी की पाठ सीखना है, मेहनत करके हर काम कर लेने की क्षमता अगर किसी में देखना है, निडर होकर आँख में आँख डालकर अपने विरोधियों से बात करने की क्षमता जो रखता है वो बिहारी ही है, जो आपके आस-पास चाहे आपका ऑफिस हो, चाहे आपका गांव, हो सकता है आपका रूम पार्टनर भी एक बिहारी ही हो, इतने गुणों वाले बिहारी समाज के लोग अपने मित्रता के लिए जाने जाते है, कहा जाता है आप बस एक बिहारी से दोस्ती कर लीजिये फिर आपको कभी किसी की जरूरत नहीं पड़ेगी। बिहारी के एक पर्व छठ पर्व की है , जो उनकी पहचान के साथ-साथ उनके उनके समाज, उनके गांव और उनके समर्पण का एक बेमिशाल उदाहरण है।

तो आइये चर्चा करते है बिहार के छठ पर्व का
छठ पर्ब का इंतजार बिहारियों को दीपावली से महीनों पहले से ही रहता है, इस परब में प्रदेश से घर आने के लिए बिहारी समाज के लोग दीपावली आने के महीनो पहले ही हवाई जहाज अथवा ट्रैन की टिकट बुक करा के रख लेते है जिससे हर शाल भारत सरकार को बिहार के लिए अतिरिक्त ट्रेनों की व्यवस्था करनी पड़ती है, इसके बावजूद भी ट्रैन के बाथरूम तक में लोग बैठकर बस अपनी छठी मैया के लिए अपने बिहार पहुँचना चाहते है। ऐसा है बिहारियों का अपने छठ पर्व व अपनी छठ मैया से प्यार। भारत ही नहीं पूरे विश्व में ऐसा कोई त्यौहार नहीं है जिसके लिए लोग इतने कस्ट सहने के बावजूद भी छठ का पर्व मानाने के लिए अपने आते है। वह रे छठ का पर्व ! वह रे छठी मैया और वह रे बिहार के लोग तुम्हे कोटि कोटि प्रणाम!

क्या आप जानते है? . . . . . . . . . . .
- AIIMS में इलाज का बदल गया नियम
- विवाह पूर्व वर-वधू की करवा ले ये जाँच नहीं तो हो सकती है जीवन भर की परेशानी
- टाइटन एक ऐसा चंद्रमा जो भविष्य में होगा इंसानों का घर – Titan Moon
- कुछ खाद्य पदार्थ भूख के दर्द को दूर करने की क्षमता का वादा करते हैं। क्या कोई खाद्य पदार्थ वास्तव में हमारी भूख को दबा सकता है?
- रात को क्यों नहीं आती नींद और क्या है बेवजह दिनभर थकान रहने का कारण !
छठ एक एक कठिन तपस्या की तरह है जिसे हमारे बिहार की महिलाएं करती है , कुछ पुरुष भी इस व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिलाओं को परवैतिन कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रति को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाये गये कमरे( जिसे लिप-पोत कर त्यार किया जाता है ) में व्रति फर्श पर एक कम्बल, तरई या चादर के सहारे ही रात बिताती हैं। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नये कपड़े पहनते हैं। जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की गयी होती है व्रति को ऐसे कपड़े पहनना अनिवार्य होता है। महिलाएँ साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। ‘छठ पर्व को शुरू करने के बाद सालों साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला इसके लिए तैयार न हो जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।’ ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएँ यह व्रत रखती हैं। पुरुष भी पूरी निष्ठा से अपने मनोवांछित कार्य को सफल होने के लिए व्रत रखते हैं।
छठ पूजा की तैयारी कैसे करते है
छठ पूजा से पहले घर्रों की साफ -सफाई किया जाता है, नए कपडे ख़रीदा जाता है, उस मौसम में होने वाले फल , फूल , अनाज जैसे नया धन का चिउड़ा , कसार , ठेकुआ , केला का घवध , सेव, नारियल मूली, सुथनी, अदरक, हल्दी, संतरा, गागल , अनानस, पान का पती , अलता , जिसे कोसी भरना हो वो लोग 12 अथवा 24 वाला कोशी जो गांव का कुम्हार त्यार कर के देता है, इसके अलावा नया बांस से त्यार टोकरी अथवा चंगेली, बांस का बना नया सुप , पूड़ी , बतासा और इनमे सबसे महत्वपूर्ण गन्ना होता कहे तो सरद ऋतू में होने वाले सभी फल व अनाज से बानी सामग्रियां होती है , जिसे बिहारी पुरुष छठ व्रतियों के लिए हप्ते भर पहले से इकठा करने लगता है, अगर किसी को स्वर्ग देखना हो तो छठ के समय बिहार चले जाओ , बाजार का माहौल गजब का होता है, शायद इसी का आनंद लेने के लिए एक बिहारी सेकड़ो किलोमीटर दूर से नौकरी का परवाह किये बिना घर चला आता है।
छठ पर्व का स्वरूप
छठ पूजा चार दिन तक चलने वाला एक पवित्र त्यौहार है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान हमारे छठ व्रत करने वाले छठवर्ती लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान अन्न तो दूर की बात है वे पानी भी ग्रहण नहीं करते है , ऐसा तप केवल बिहार के महिलाओं में ही देखा जा सकता है।
पहला दिन (नहाय खाय)

छठ पर्व का पहला दिन जिसे ‘नहाय-खाय’ के नाम से जाना जाता है,उसकी शुरुआत चैत्र या कार्तिक महीने के चतुर्थी कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है ।सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। उसके बाद छठव्रती अपने नजदीक में स्थित गंगा नदी,गंगा की सहायक नदी, तालाब अथवा अन्य प्राकृतिक जलस्त्रोतों में जाकर स्नान करते है। व्रती इस दिन नाखनू वगैरह को अच्छी तरह काटकर, स्वच्छ जल से अच्छी तरह बालों को धोते हुए स्नान करते हैं। लौटते समय वो अपने साथ गंगाजल लेकर आते है जिसका उपयोग वे खाना बनाने में करते है । वे अपने घर के आस पास को साफ सुथरा रखते है । व्रती इस दिन सिर्फ एक बार ही खाना खाते है । खाना में व्रती कद्दू की सब्जी ,मुंग चना दाल, चावल का उपयोग करते है .तली हुई पूरियाँ पराठे सब्जियाँ आदि वर्जित हैं. यह खाना कांसे या मिटटी के बर्तन में पकाया जाता है। खाना पकाने के लिए आम की लकड़ी और मिटटी के चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है। जब खाना बन जाता है तो सर्वप्रथम व्रती खाना खाते है उसके बाद ही परिवार के अन्य सदस्य खाना खाते है ।
दूसरा दिन (खरना)
छठ पर्व का दूसरा दिन जिसे खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है,चैत्र या कार्तिक महीने के पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन व्रती पुरे दिन उपवास रखते है . इस दिन व्रती अन्न तो दूर की बात है सूर्यास्त से पहले पानी की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करते है। शाम को चावल गुड़ और गन्ने के रस का प्रयोग कर रासीवाव (गन्ने के रास का खीर) बनाया जाता है। खाना बनाने में नमक और चीनी का प्रयोग नहीं किया जाता है। इन्हीं दो चीजों को पुन: सूर्यदेव को नैवैद्य देकर उसी घर में ‘एकान्त’ करते हैं अर्थात् एकान्त रहकर उसे ग्रहण करते हैं। परिवार के सभी सदस्य उस समय घर से बाहर चले जाते हैं ताकी कोई शोर न हो सके। एकान्त से खाते समय व्रती हेतु किसी तरह की आवाज सुनना पर्व के नियमों के विरुद्ध है।
You Can also read………………………………...
- Chhath festival – An identity of Biharis
- Million year old human skull found in China
- Neutral home Remedies for Common Cold
- Population Explosion: World’s Biggest Challenge
- The ‘super-deep’ royal diamonds revealing Earth’s
पुन: व्रती खाकर अपने सभी परिवार जनों एवं मित्रों-रिश्तेदारों को वही ‘खीर-रोटी’ का प्रसाद खिलाते हैं। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को ‘खरना’ कहते हैं। चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी भी प्रसाद के रूप में वितरीत की जाती है। इसके बाद अगले 36 घंटों के लिए व्रती निर्जला व्रत रखते है। मध्य रात्रि को व्रती छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ बनाती है ।
तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य)

छठ पर्व का तीसरा दिन जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है,चैत्र या कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। पुरे दिन सभी लोग मिलकर पूजा की तैयारिया करते है। छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसेठेकुआ, चावल के कसार जिसे कचवनिया भी कहा जाता है, बनाया जाता है । छठ पूजा के लिए एक बांस की बनी हुयी टोकरी जया दउरा में पूजा के प्रसाद,फल डालकर देवकारी में रख दिया जाता है। वहां पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल,पांच प्रकार के फल,और पूजा का अन्य सामान लेकर दउरा में रख कर घर का पुरुष अपने हाथो से उठाकर छठ घाट पर ले जाता है। यह अपवित्र न हो इसलिए इसे सर के ऊपर की तरफ रखते है। छठ घाट की तरफ जाते हुए रास्ते में प्रायः महिलाये छठ का गीत गाते हुए जाती है.
नदी या तालाब के किनारे जाकर महिलाये घर के किसी सदस्य द्वारा बनाये गए धन के पुआल पर बैठती है। नदी से मिटटी निकाल कर छठ माता का जो चौरा बना रहता है उस पर पूजा का सारा सामान रखकर नारियल चढाते है और दीप जलाते है। सूर्यास्त से कुछ समय पहले सूर्य देव की पूजा का सारा सामान लेकर घुटने भर पानी में जाकर खड़े हो जाते है और डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करते है।

सामग्रियों में, व्रतियों द्वारा स्वनिर्मित गेहूं के आटे से निर्मित ‘ठेकुआ’ सम्मिलित होते हैं। यह ठेकुआ इसलिए कहलाता है क्योंकि इसे काठ के एक विशेष प्रकार के डिजाइनदार फर्म पर आटे की लुगधी को ठोकर बनाया जाता है। उपरोक्त पकवान के अतिरिक्त कार्तिक मास में खेतों में उपजे सभी नए कन्द-मूल, फलसब्जी, मसाले व अन्नादि यथा गन्ना, ओल, हल्दी, नारियल, नींबू(बड़ा), पके केले आदि चढ़ाए जाते हैं। ये सभी वस्तुएं साबूत (बिना कटे टूटे) ही अर्पित होते हैं। इसके अतिरिक्त दीप जलाने हेतु,नए दीपक,नई बत्तियाँ व घी ले जाकर घाट पर दीपक जलाते हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण अन्न जो है वह है कुसही केराव के दानें (हल्का हरा काला, मटर से थोड़ा छोटा दाना) हैं जो टोकरे में लाए तो जाते हैं पर सांध्य अर्घ्य में सूरजदेव को अर्पित नहीं किए जाते। इन्हें टोकरे में कल सुबह उगते सूर्य को अर्पण करने हेतु सुरक्षित रख दिया जाता है। बहुत सारे लोग घाट पर रात भर ठहरते है वही कुछ लोग छठ का गीत गाते हुए सारा सामान लेकर घर आ जाते है और उसे देवकरी में रख देते है ।

चौथा दिन ( उगते हुए सूर्य देवता को अर्घ्य- परना )

चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्यदेवता को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्योदय से पहले ही व्रती लोग घाट पर उगते सूर्यदेव की पूजा हेतु पहुंच जाते हैं और शाम की ही तरह उनके पुरजन-परिजन उपस्थित रहते हैं। संध्या अर्घ्य में अर्पित पकवानों को नए पकवानों से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है परन्तु कन्द, मूल, फलादि वही रहते हैं। सभी नियम-विधान सांध्य अर्घ्य की तरह ही होते हैं। सिर्फ व्रती लोग इस समय पूरब की ओर मुंहकर पानी में खड़े होते हैं व सूर्योपासना करते हैं और है और तब तक पानी में खड़े रहते है जब तक कि सूर्यदेवता अपना दर्शन नहीं देते। पूजा-अर्चना समाप्तोपरान्त घाट का पूजन होता है। वहाँ उपस्थित लोगों में प्रसाद वितरण करके व्रती घर आ जाते हैं और घर पर भी अपने परिवार आदि को प्रसाद वितरण करते हैं। व्रति घर वापस आकर गाँव के पीपल के पेड़ जिसको ब्रह्म बाबा कहते हैं वहाँ जाकर पूजा करते हैं। पूजा के पश्चात् व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं जिसे पारण या परना कहते हैं। व्रती लोग खरना दिन से आज तक निर्जला उपवासोपरान्त आज सुबह ही नमकयुक्त भोजन करते हैं l
क्या आप जानते है? . . . . . . . . . . .
- AIIMS में इलाज का बदल गया नियम
- विवाह पूर्व वर-वधू की करवा ले ये जाँच नहीं तो हो सकती है जीवन भर की परेशानी
- टाइटन एक ऐसा चंद्रमा जो भविष्य में होगा इंसानों का घर – Titan Moon
- कुछ खाद्य पदार्थ भूख के दर्द को दूर करने की क्षमता का वादा करते हैं। क्या कोई खाद्य पदार्थ वास्तव में हमारी भूख को दबा सकता है?
- रात को क्यों नहीं आती नींद और क्या है बेवजह दिनभर थकान रहने का कारण !
छठ से सम्बंधित पौराणिक और लोक कथाएँ
छठ पूजा की परम्परा और उसके महत्त्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं।
रामायण से
एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
महाभारत से
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।
कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।
पुराणों से
एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परन्तु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ। हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बाँस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्त्तनों, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है।
शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गयी उपासना पद्धति है। इसके केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रन्थ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पुरोहित या गुरु के अभ्यर्थना की। जरूरत पड़ती है तो पास-पड़ोस के सहयोग की जो अपनी सेवा के लिए सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहता है। इस उत्सव के लिए जनता स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करती है। नगरों की सफाई, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबन्धन, तालाब या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा-भाव और भक्ति-भाव से किये गये सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।
इस प्रकार हमारे बिहार के लोग छठ के समाप्ति के पश्चात पुनः अपने कार्स्थल पर लोट आते है और साथ में ठेकुआ रूपी प्रसाद अपने मित्रों को जरूर खिलते है, यह दर्शय बहुत ही मार्मिक और भावबिभोर करने वाला होता है।
आपको हमारा लेख कैसा लगा आप हमें अपनी रे जरूर दीजियेगा।
