Guru Nanak Jayanti in Hindi | गुरु नानक जयंती जानिए प्रकाश उत्सव क्यों मनाया जाता है ? जानिये सबकुछ वो भी हिंदी में!
आप तो जैसा कि जानते ही है, गुरु नानक देवजी को नए धर्म यानी सिख धर्म का संस्थापक माना जाता था और वे सिखों के पहले गुरु थे। वह एक महान भारतीय आध्यात्मिक गुरु थे। हर शाल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के मौके पर गुरु नानक जयंती मनाई जाती है। सिख समुदाय ही नहीं बल्की पूरे भारतवर्ष के उन लोगों जो इस पर आस्था रखते हैं उनके लिए यह बहुत महत्वपूर्ण पर्व होता है, इस पर्व को सिखों का प्रकाश पर्व भी कहते हैं। इस दिन सुबह से शाम तक गुरुद्वारों में प्रार्थना व दर्शन का दौर जारी रहता है। लंगर लगाये जाते हैं सभाएं आयोजित की जाती हैं। गुरु नानक जयंती के मौके पर गुरु नानक देव के द्वारा दी गई शिक्षाओं के बारे में बताया जाता है। इस मौके गुरु ग्रंथ साहिब पाठ किया जाता है।

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आइये जानते गुरुनानक देवजी के जन्म व स्थान के बारे में | Guru Nanak Jayanti in Hindi
Guru Nanak Jayanti in Hindi के अनुसार सिखों के पहले गुरु नानक जी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवण्डी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्री(क्षत्रिय)कुल म में 1469 में पंजाव प्रांत मे हुआ था। ये स्थान अब पाकिस्तान में है। इस स्थान को नानकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किन्तु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवम्बर में दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है। इनके पिता का नाम मेहता कालूचन्द खत्री तथा माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवण्डी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था।
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गुरुनानक देव का विवाह व परिवार | Guru Nanak Jayanti in Hindi
गुरुनानक देवजी का विवाह बचपन मे सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अन्तर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। 32 वर्ष के उम्र आते – आते इनके पहले पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ। चार वर्ष बाद दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों लड़कों के जन्म के उपरान्त 1507 में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पडे़। उन पुत्रों में से ‘श्रीचन्द आगे चलकर उदासी सम्प्रदाय के प्रवर्तक हुए।
Guru Nanak Jayanti in Hindi के अनुसार गुरुनानक देवजी मूर्तिपूजा के खिलाफ थे। गुरुनानक देव जी कहते थे कि ईश्वर हमारे अंदर है। वह कहीं बाहर नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इन्हें तत्कालीन इब्राहीम लोदी ने कैद कर लिया था। फिर जब पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम हार गए तब बाबर की जीत हुई। फिर बाबर ने इनको कैद से मुक्ति दिलाई। इनके विचारों ने समाज में परिवर्तन लाया। इन्होंने करतारपुर (पाकिस्तान) नामक स्थान बसाया था। साथ ही एक धर्मशाला भी बनवाई थी। इनकी मृत्यु 22 सितंबर 1539 को हुआ था। इनकी मृत्यु से पहले नानक देव ने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया। इसके बाद वो गुरु अंगद देव नाम से जाने गए।
गुरु नानक देव की पांच यात्राएं | Guru Nanak Jayanti in Hindi
गुरु नानक देवजी ने ईश्वर के संदेश को दुनियाँ के कोने- कोने में फैलाने के लिए उपमहाद्वीप में प्रमुख रूप से चार आध्यात्मिक यात्राएं कीं। सबसे पहले वह अपने माता-पिता के पास गए और उन्हें इन यात्राओं का महत्व बताया और फिर उन्होंने यात्रा शुरू की।
- पहली यात्रा में उन्होंने पाकिस्तान और भारत के अधिकांश हिस्सों को कवर किया और इस यात्रा में लगभग 7 साल लगे यानि साल 1500 से साल 1507 तक।
- दूसरी यात्रा में उन्होंने वर्तमान श्रीलंका के अधिकांश हिस्सों को कवर किया और इसमें 7 साल भी लगे।
- तीसरी यात्रा में उन्होंने हिमालय, कश्मीर, नेपाल, सिक्किम, तिब्बत और ताशकंद जैसे पर्वतीय क्षेत्रों को कवर किया। यह यात्रा साल 1514 से साल 1519 तक चली और इसे पूरा होने में लगभग 5 साल लगे।
- चौथी यात्रा में उन्होंने मक्का और मध्य पूर्व के अन्य स्थानों का दौरा किया और इसमें 3 साल लग गए।
- पांचवी यात्रा में उन्होंने दो साल तक पंजाब में संदेश फैलाया। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपने जीवन के लगभग 24 वर्ष इन यात्राओं में बिताए और पैदल ही लगभग 28,000 किमी की यात्रा की।
गुरु नानक देवजी की महान रचनाये | Guru Nanak Jayanti in Hindi
Guru Nanak Jayanti in Hindi के अनुसार इनकी अनेको रचनाएँ थी कुछ का जिक्र हम यहाँ कर रहे है
- जपु जी
- झूठी देखी प्रीत
- को काहू को भाई
- जो नर दुख में दुख नहिं मानै
- सूरा एक न आँखिए
- राम सुमिर, राम सुमिर
- सब कछु जीवित कौ ब्यौहार
- हौं कुरबाने जाउँ पियारे
- मुरसिद मेरा मरहमी
- काहे रे बन खोजन जाई
- प्रभु मेरे प्रीतम प्रान पियारे
- अब मैं कौन उपाय करूँ
- या जग मित न देख्यो कोई
- जो नर दुख में दुख नहिं माने
- यह मन नेक न कह्यौ करे
उन्होंने लोगों को सिखाया कि भगवान तक पहुंचने के लिए हमें किसी अनुष्ठान और पुजारियों की आवश्यकता नहीं है। भगवान को पाने के लिए उन्होंने लोगों से भगवान का नाम जपने को कहा। उन्होंने लोगों को दूसरों की मदद और सेवा करके आध्यात्मिक जीवन जीना सिखाया।
उन्होंने उन्हें किसी भी तरह की धोखाधड़ी या शोषण से दूर रहने और एक ईमानदार जीवन जीने के लिए कहा। मूल रूप से, अपनी शिक्षाओं के माध्यम से उन्होंने नए धर्म यानी सिख धर्म के तीन स्तंभों की स्थापना की जिनका उल्लेख नीचे किया गया है:
नाम जपना: इसका अर्थ है भगवान के नाम को दोहराना और भगवान के नाम और उनके गुणों का अध्ययन करने के साथ-साथ गायन, जप और जप जैसे विभिन्न तरीकों से ध्यान के माध्यम से भगवान के नाम का अभ्यास करना।
किरत करणी: इसका सीधा सा मतलब है ईमानदारी से कमाई करना। उन्होंने उम्मीद की कि लोग गृहस्थों का सामान्य जीवन जीएं और अपने शारीरिक या मानसिक प्रयासों के माध्यम से ईमानदारी से कमाएं और हमेशा सुख और दुख दोनों को भगवान के उपहार और आशीर्वाद के रूप में स्वीकार करें।
वंद चकना: इसका सीधा सा मतलब है एक साथ बांटना और उपभोग करना। इसमें उन्होंने लोगों से अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा समुदाय के साथ बांटने को कहा। वंद चकना का अभ्यास करना सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है जहां हर सिख समुदाय के साथ अपने हाथों में जितना संभव हो उतना योगदान देता है।
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(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं. The Power of Knowledge इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)